माँ प्रेरणा का स्त्रोत
माँ शब्द में वह ताकत है, जो हर एक व्यक्ति के मन में प्यार, उल्हास, स्नेह, संवेदनशीलता , करुणा अपने आप ही पैदा करता है। माँ ईश्वर का दूसरा रूप है। माँ के बिना संसार में सब कुछ अधूरा है। मानव चाहे जितना भी अमीर हो या गरीब हो, लेकिन जब उसके पास माँ होती है तो उसे हर समस्याओंसे लड़ने के लिए ताकत मिलती है। भगवान हर एक जगह नहीं जा पाते इसलिए उन्होंने भगवान स्वरूप माँ को तैयार किया है। माँ ममता की मूर्ति होती है। बच्चों को हमेशा खुश रखने के लिए वह लाख समस्याओं को भी पार कर देती है। भारत देश में आज तक तो माँ अपने बेटों के पास या बेटे अपने माँ के पास रहते हैं। लेकीन अमरिका, इंग्लैंड जैसे देशों में ऐसा देखने को मिलता है कि बच्चे अपने माँ बाप से दूर रहते हैं। माँ के लिए कृतज्ञता व्यक्त करने के लिए कभी कबार उनके पास जाते हैं। इस तरह सबसे पहले अमेरिका में मई महीने का दूसरा रविवार मातृदिन के तौर पर मनाया जाने लगा। उस दिन बेटें अपनी मां के पास जाते हैं, उसे अच्छे-अच्छे तोहफें देते हैं , उसके साथ बैठकर खाना खाते हैं। और उसके पास एक दिन गुजारते हैं। और यही प्रथा भारत में भी आ गई। इतिहास गवाह है भारत में शूरवीर योद्धा ,पराक्रमी वीर हो गए हैं और उनके पीछे उन्हें महान बनाने के लिए उनकी माताएं थी। माता जिजाऊ, ने स्वराज्य संस्थापक महान राजा शिवाजी महाराज को अपने संस्कार से, अपने शिक्षा से ,अपने नीतिमत्ता के बलबूते पर इतना अच्छा खासा इंसान बनाया कि वह आज भी दुनिया में एक आदर्श राजा के रूप में मशहूर है। सम्राट अशोक की माता ने भी उसे महान बनाने के लिए जब वह छोटा था तब से उससे इतना कठोर परिश्रम करवाया कि आगे चलकर वह एक महान राजा बन गया। साने गुरुजी ने तो अपनी माँ को "श्यामची आई " पुस्तक लिखकर पूरे विश्व में वंदनीय बनाया उन्होंने कहा कि , "मेरी माता संस्कारों की खान है " । माँ अपने बच्चों के लिए कितना भी कष्ट झेलने के लिए हँसते हुए तैयार होती है। अपने बच्चों के सुख के आगे वह अपना सारा दुख भूल जाती है। माँ के लिए 1 दिन नहीं तो पूरे 365 दिन भी काफी नहीं है उसका शुक्रीया अदा करने के लिए। बच्चों को अपने बाप से ज्यादा अपने मां पर भरोसा होता है। जब उन्हें कुछ चाहिए होता है तो वह अपने बाप से नहीं मांगते तो माँ को कहकर वह अपनी चीज मंगवाते हैं। माँ घर के सुख के लिए हमेशा तैयार रहती है। लेकिन धीरे-धीरे यह सब बदलता गया। विभक्त कुटुंब पद्धती आ गई। हम दो हमारे दो ऐसा घर अच्छा लगने लगा। इसमें माँ-बाप की कोई जगह नहीं रही। ऐसा नहीं है कि सभी तरफ ऐसा हो रहा है, लेकिन बहुत सारे घरों में हम देखते हैं मां और बहू का झगड़ा होता रहता है। बेटे को तो दोनों प्रिय होती हैं। उसे यह पता नहीं चलता कि वह किस की तरफदारी करें। वह बौखला जाता है। आखिरकार पत्नी के सामने उसका कुछ नहीं चलता। और ना चाह कर भी वह अपनी माँ को ही दोषी ठहराता है। तब वह यह नहीं सोचता कि मेरे रवैय्ये से अपनी माँ को कितना दुख हो रहा है!! बहूएँ तो भी किसी की बेटी होती है। उनकी भी माँ होती है। वह भी माँ बनने वाली होती है। उन्हें भी यह सोचना चाहिए। और अपनी सासू माँ को ही अपनी माँ के समान हीं मानना चाहिए। ताकि आगे चलकर उसका भी वही हाल न हो। जैसा हम बोते हैं वैसा ही हम पाते हैं। यह प्रकृति का दस्तूर है।आज हम शहर में देखते हैं छोटा परिवार सुखी परिवार के माया जाल में फँस कर बेटे और बहुएँ मिलकर माँ-बाप को वृद्ध आश्रम में भेज रहे हैं। यह सही नहीं है। इसके बारे में सबको विचार करना चाहिए। और अपनी माँ को हमेशा के लिए सम्मान देना चाहिए।माँ की महत्ता तो सब जानते हैं। मातृदिन माँ के सम्मान का उत्सव है। हर दिन मातृदिन होना चाहिए। माँ का बखान हम अपने शब्दों में कभी भी नहीं कर सकते। कितना भी लिखो वह अधूरा ही रहता है। माँ की सेवा करने से जन्नत नसीब होती है। इसलिए अपनी माँ को या दूसरों की माँ को भी हमेशा खुश रखो, उनकी सेवा करो हमेशा के लिए समाधानी जीवन पाओ। क्योंकि माँ तो कभी आपसे किसी चीज की तकरार नहीं करेगी। अपनी समस्या नहीं बताएगी, उसे पता है कि उसका बेटा क्या है वह क्या कर रहा है। बेटा जिस हाल में रखता है उस हाल में भी वह खुश रहती है। बस उसे अपने बेटों का प्यार चाहीए । अपने लोगों से और कुछ उम्मीद नहीं रखती। अपनी माँ कैसी भी हो तो अपनी माँ के प्रति अपने मन में आदर भाव रखकर अपने दिल में रखो।
लेखिका
श्रीमती माणिक नागावे
कुरुंदवाड, जिला. कोल्हापुर
9881862530
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