णमोकार मंत्र
सब मंत्रों में महान मंत्र,
णमोकार का गाओ गान।
त्याग के अपना मान सम्मान,
वंदन करेंगे छोड़ अभिमान।
टूटता है यहाँ अहंकार,
समर्पण भाव जगते हैं।
आत्मा निर्मल होती है ,
पंचपरमेष्ठी को भजते हैं।
णमो शब्द को समझो तुम,
प्यार से झुकना आगे तुम।
चेहरा प्रसन्ना रखो तुम,
आत्मीयता की वाणी तुम।
करो आचरण बड़े गुणों से,
नमना पंचपरमेष्ठीयों को।
मूलमंत्र ये जैन धर्म का,
उठाता है उपर मानव जाति को।
पैंतीस अक्षर अठ्ठावन मात्राएँ,
अरिहंत, सिद्ध, आचार्य, उपाध्याय।
साधु ये पद पाँच समाए ,
कर लो हर दिन इसका स्वाध्याय।
बोलो णमो अरिहंत को,
बोलो णमो तुम सिद्ध को।
णमो आचार्य, उपाध्याय को,
णमो तुम साधु को करो।
ऐसा है यह महान मंत्र,
कभी ना इसको भुला देना।
गाकर इसका जय जयकार,
कल्याण खुद का कर लेना।
कवयित्री
श्रीमती माणिक नागावे
कुरुंदवाड,जिल्हा. कोल्हापूर
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