Tuesday, 29 May 2018

लेख तंबाकू विरोधी अभियान

     तंबाकू विरोधी अभियान

31 मई को जागतिक तंबाकू विरोधी दिन मनाया जाता है । तंबाकू और तंबाकूजन्य पदार्थोंसे लोग दूर रहे ,तंबाकू के दुष्परिणाम के बारे में लोगों को पता चले ईसलिए यह दिन मनाया जाता है।

  मानव एक समाजप्रिय प्राणी है । ईसे समूह में रहना पसंद है । समूह में रहकर एकदुसरे के आनंद और दुःख में शरीक होने की प्रथा प्रचलित है ।ईसीकारण मौजमस्ती के लिए , मन को , शरीर को आनंद देने के लिए वे मादक द्रव्यों को अपनाते है। मादक द्रव्य या नशीले पदार्थ । इसमें तंबाकू का ज्यादा उपयोग होता है जैसे बीडी , सिगारेट , हुक्का , जरदा , पानमसाला , चबाकर खानेवाली तंबाकू इ.का प्रयोग मानव करता है ।

धूम्रपान का ईतिहास देखा जाय तो वह 5000-3000 ई.पू.के पहले से है। प्राचीन काल में ईसे सुगंध के तौरपर जलाया जाता था।जिससे लोगोंको आनंद मिलता था । लेकीन धीरे-धीरे लोगोंको इसकी आदत सी हो गयी । बाद में इसकी आलोचना भी बडी मात्रा में हुई ,फीर भी यह लोकप्रिय होते गया । 1920 को धूम्रपान के कारण फेंफडें का कैंसर होता है ईसका पता चला ,और धूम्रपान विरोधी अभियान शुरु हुआ। 1050 में भी ईसके विरोध में खूब चर्चा हुई । 1980 में इसके वैज्ञानिक प्रमाण प्राप्त हुए ।

   तंबाकू का सेवन करना अब आम बात हो गई है। बीडी, सिगारेट या हुक्का पिते समय तंबाकू को सुलगाकर उसकी भाँप अंदर खिंच ली जाती है जो सिधा फेंफडोंमे जाता है और वहाँ की कोशिकाएँ ईस भाँप को शोषित करती है जिसके कारण डोपामाईन और एडोर्फिन का रिसाव होता है।ईसके बाद ह् दय गती , स्मृती और सतर्कता बढ जाती है और आनंदानुभूती का आभास हो जाता है,लेकीन ईस अनुभूतीसे जादा खतरनाक है ईसके शरीरपर होनेवाले दुष्परिणाम । किशोरावस्था या युवावस्था में ही जादातर लोग धूम्रपान की शुरुआत करतें हैं। प्रारंभिक अवस्था में आनंद की अनुभूती के कारण ईसीकाही दृढीकरण हो जाता है जो सकारात्मक सदृढीकरण के रुप में कार्य करता है। ऊसे वही अच्छा और सही लगने लगता है।और ईसीमें वह पूरी तरह से घुलमिल जाता है।ईससे बाहर आना मुश्कील हो जाता है।

  तंबाकू लोग अब अपने पास पाऊचोंमें रखने लगें हैं।ईसलिए वह हमेशा ऊनके पास रहती है और जब मन चाहे ऊसे वे चबाते है।कुछ लोग ईसका समर्थन यह कहकर करतें है की यह दाँतदर्द और कानदर्दमें औषधी के रुप में काम आता है।रेगिस्तान के लोग कहते हैं की तंबाकू से जुकाम ठीक हो जाता है। लेकीन लोग यह नही समझते की तंबाकू से लाभ की अपेक्षा नुकसान ही ज्यादा होता है।ईसलिए तंबाकू हमेशा आलोचना का भागी बना हुआ है। ओटोमन साम्राज्य के सुलतान मुराद चतुर्थ ने तंबाकू विरोधी अभियान को सबसे पहले शुरुआत की और तंबाकू पर प्रतिबंध लगाने की कोशिश की।बादमें अनेकोंने ईसके खिलाप आवाज ऊठाया जो आजतक जारी है।विकसनशील देशों में तंबाकू की खपत सबसे जादा है।

   बीडी,सिगार के पिने से फेंफडों को नुकसान पहुँचता है।ईसके अलावा सिगरेट, ईलेक्ट्रानिक सिगरेट,हुक्का, क्रेटेक्स,अप्रत्यक्ष धूम्रपान, पाईप धूम्रपान, रोल-योर-ओन,वेपोराईजर जैसे कई प्रकार से तंबाकू का सेवन कीया जाता है। तंबाकू में जो निकोटिन होता है जिससे शरीर को,फेंफडोंमे, आँतोंमें नुकसान पहुँचता है। ईसके साथ ह् दय रोग,दिल का दौरा पडना,कर्करोग, यकृत की बिमारी,टिबी,पक्षाघात, नपुंसकत्व जैसी बिमारीयाँ हो जाती है।डोपामाईन से प्रचुर मात्रा में न्यूराँन्स निकोटीन रिसेप्टर प्रवाहीत होता है,जिसके कारण धीरे-धीरे व्यक्ती कमजोर बनती है।शरीर के अंतरांगोंकी क्षमता क्षिण होने लगती है।कैंसर जैसा महाभयंकर रोग हो जाता है जिसमें प्राण तक जाने की नौबत आती है।

   नशाविहीन जीवन लोग जिए ईसलिए सरकार प्रयत्नशील है।भारत में तंबाकू के सेवनसे 10 लाख लोग अनेक प्रकारके रोगोंके कारण मर जाते हैं।महाराष्ट्र में साधारण तौरपर 36% पुरुष और 5% महिलाएँ तंबाकू और तंबाखूजन्य पदार्थोंका सेवन करते है।यह भयावह है।लोगोंको ईसका पता होनेपरभी वे ईस लत से बाहर नहीं आ रहे है।भारत सरकार और एनजीओ द्वारा भरकस प्रयास कीया जा रहा है, लेकीन यह तभी संभव है जब तंबाकू का सेवन करनेवाले ही ईसका ईस्तेमाल खुद के मन से छोड दें।तंबाकू को त्यागने की दृढ ईच्छा ऊनके मन में जागें ऐसी मनिषा मैं परमेश्वर के शरण में आकर करती हूँ।

करो न तुम नशा
ना सेवन तंबाकू का
नहीं तो अटल है
सर्वनाश तेरे जीवन का

लेखिका
श्रीमती माणिक नागावे
कुरुंदवाड , ता. शिरोळ,
जिल्हा. कोल्हापूर.
9881862530

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