Thursday, 12 July 2018

हिंदी कविता ( जनसंख्या दिन )

जनसंख्या दिन

देखकर बढती हुई आबादी,
धरती अपने आप से बोली।
भविष्य मेरा कैसा होगा,
क्या हो जाएगी मेरी होली ?

मानव ने खो दी है मानवता,
कर रहा है वह वृक्षसंहार।
अपनी आबादी के कारण,
कर रहा मुझपर प्रहार।

समज ले ये तू नासमझ ,
शेखचिल्ली तू बन रहा है।
न रोक के ये आबादी तू,
पाँवपर कुल्हाडी मार रहा है।

जाग अभी समय है,
सिमीत कर तू परिवार ।
दोनों रहेंगे खुशहाल यहाँ,
कर ले तू सोच विचार ।

जनसंख्या दिन मनाने की,
नौबत ही नहीं आयेगी ।
सही विचार तेरा तुझे ,
भविष्य तेरा सवाँरेंगी ।

कवयित्री
श्रीमती माणिक नागावे
कुरुंदवाड
9881862530

No comments:

Post a Comment