जनसंख्या दिन
देखकर बढती हुई आबादी,
धरती अपने आप से बोली।
भविष्य मेरा कैसा होगा,
क्या हो जाएगी मेरी होली ?
मानव ने खो दी है मानवता,
कर रहा है वह वृक्षसंहार।
अपनी आबादी के कारण,
कर रहा मुझपर प्रहार।
समज ले ये तू नासमझ ,
शेखचिल्ली तू बन रहा है।
न रोक के ये आबादी तू,
पाँवपर कुल्हाडी मार रहा है।
जाग अभी समय है,
सिमीत कर तू परिवार ।
दोनों रहेंगे खुशहाल यहाँ,
कर ले तू सोच विचार ।
जनसंख्या दिन मनाने की,
नौबत ही नहीं आयेगी ।
सही विचार तेरा तुझे ,
भविष्य तेरा सवाँरेंगी ।
कवयित्री
श्रीमती माणिक नागावे
कुरुंदवाड
9881862530
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