Thursday, 12 September 2019

लेख हिंदी भाषा ( हिंदी भाषा )


कोस कोस पर बदले पानी, चार कोस पर वाणी ऐसा कहते हैं कि, पानी का स्वाद कोस कोस पर बदलता है, और चार कोस पर वाणी भी बदल जाती है । भारत देश बहुभाषिक देश है। यहां पर अनेक भाषा बोलने वाले लोग मिल जुल कर रहते हैं। एक दूसरे के विचार, भावना समझ लेते हैं। 14 सितंबर 1949 को संविधान सभा ने हिंदी को राजभाषा के रूप में स्वीकार किया। राज्य भाषा हो या राष्ट्रभाषा, वह कैसी एक भाषा होती है,जो जनसंपर्क की भाषा होती है। ज्यादा से ज्यादा लोग उसे बोलते हैं, समझते हैं,  सरलता से अपने विचार अपनी भावनाएं प्रकट कर सकते हैं। यह सब देखा जाए तो हिंदी ऐसी भाषा है जो बहुत सारे लोग बोलते हैं ,समझते हैं। इतना ही नहीं हिंदी भाषा का साहित्य भी प्रचुर मात्रा में है। नेक ख्यातनाम साहित्यिक जैसे प्रेमचंद, महादेवी वर्मा ,मैथिलीशरण गुप्त, सुभद्रा कुमारी चौहान, संत कबीर, सूरदास जैसे अनेकों संतों ने , साहित्यिकोंने हिंदी भाषा में अपने विचार प्रकट किए हैं। प्रेमचंद्र के अनेक उपन्यासों पर जो सामाजिक आशय से प्रभावित है उन पर फिल्म भी बनाए गए हैं। किसी भी राष्ट्र की पहचान उसके भाषा से होती है, उसकी संस्कृति से होती है। हर एक देश की अपनी भाषा होती है। और यह भी सही है, अगर खुद की उन्नति करना है, विकास करना है, वह अपनी भाषा में ही अच्छी तरह से हो सकता है। अगर हम दूसरी भाषाओं को अपने ऊपर हावी कर देंगे तो हमारा विकास रुक जाएगा। विकास में रुकावट आएगी। अपनी भावना और विचार को  अपनी ही भाषा में ही अच्छी तरह से प्रकट कर सकते हैं। अपनी भाषा को छोड़कर जो दूसरी भाषा को अपनाता है वह उसका गुलाम बन जाता है। क्योंकि हम अपनी भाषा में ही अपने विचार स्पष्ट रूप से प्रकट कर सकते हैं। हिंदी एक ऐसी भाषा है जो पूरे भारतवर्ष में बोली और समझी जा सकती है। हिंदी भारत की माथे की बिंदी है। बिंदी के बिना जैसे चेहरा अच्छा नहीं लगता उसी तरह आशा के बिना भी  देश अच्छा नहीं लगता। भाषा के बिना गूंगे पन का एहसास हो जाता है। हिंदी को राष्ट्रभाषा से अब राज्य भाषा का स्थान प्राप्त हुआ है। हिंदी भाषा का प्रसार और प्रचार करना हमारा , हर भारत वासियों का कर्तव्य है। पाठ्यक्रम से भी  हिंदीभाषा निकाले जाने की भाषा की जा रही है। यह अच्छी बात नहीं है।  इसके लिए हमें प्रयास करना है। और हिंदी भाषा का महत्व बढ़ाना है। अगर हम सच्चे दिल से यह करते हैं तो कोई कठिन बात नहीं है।

लेखिका
श्रीमती माणिक नागावे
कुरुंदवाड, जिल्हा. कोल्हापूर

No comments:

Post a Comment