शिल्पकार
शिल्पकार तू नवयुवकों का,
बचपन से ही तू राह दिखाएं
ज्ञान की पोटली खोल के ,
सही गलत की पहचान कराए।
है ज्ञान का भंडार तू ,
जितना दे उतना कम ही है ।
लेने वाला सजग हमेशा ,
ध्यान तुझ पर ही रखना है।
स्थान तेरा अटल है,
स्नेह बंधन तेरा अटूट है।
मांँ बाप के बाद तू ही है,
ब्रह्मा विष्णु महेश का त्रिकूट है।
करते हैं सम्मान सदा से
आदर भावना उमड़ती है।
बिना गुरु के जीवन में,
जीवनधारा ही सिकुडती है।
बिना तेरे सुना ज्ञान का आंँगन,
बिना तेरे नहीं है जीवन ।
करता उज्जवल भविष्यकाल तू,
तू ही है सबका मनभावन ।
प्रणाम तुझको हे गुरुवर ,
आशीष सदा हम पाएंगे ।
जीवनभर हे शिल्पकार तेरा,
गुनगान सदा ही गाएंगे ।
कवयित्री
श्रीमती माणिक नागावे
कुरुंदवाड, जिल्हा. कोल्हापूर
9881862530
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