5 जून जागतिक पर्यावरण दिन
जागतिक पर्यावरण दिन संयुक्त राष्ट्र संघ का सबसे महत्वपूर्ण कार्यक्रम है । इ.स.1972 में संयुक्त राष्ट्र संघके जनरल असेंब्लीने ईसकी स्थापना की । ईसका मुख्यालय नैरोबी (केनिया ) में है । पर्यावरण का महत्त्व सबको समझ आये और लोगोंमें जागृती हो ईसलिए 5 जून को आंतरराष्ट्रीय पर्यावरण दिन मनाया जाता है ।
पर्यावरण और मानव का नाता अतूट है। " पर्यावरण याने हम जिस जगह रहते है , वहाँ का सारा परिसर या परीस्थिती " सजीव को जैविक ओर निर्जीव को अजैविक घटक कहते है । इन दोनोंकी पारस्पारिक आंतरक्रिया याने परिसंस्थाहोती है । यह हमेशा चलनेवाली प्रक्रिया है । पर्यावरण में स्थित खनिज और शक्तीसाधनोंके सहारे मानव विकास के एक उच्च स्तर पर जा बैठा है । खुद की माँगे पूरी करने के लीए मानव अनेक प्रकार के संशोधन करके नये नये अविष्कार ढुँढ निकाले है।
प्राचीन काल में गुरुकुल पद्धती के कारण पर्यावरण को अलगसे पहचान लेने की जरुरत नही थी। 20 वी शताब्दी मेंगुरु रविंद्रनाथ टागोर ने " शांतिनिकेतन " की स्थापना प्राकृतिक , पर्यावरण के सान्निध्य में की । जिससे प्रकृती के प्रती कृतज्ञताका भाव अपने आप मनमें तैयार होता था। प्रकृती को संभाला जाता था।लेकीन आजकल हम देख रहें है ,हरतरफ प्रकृती को नुकसान ही पहुँचाया जा रहा है। मानवद्वारा पर्यावरण को प्रदुषित कीया जा रहा है। आज की मानव की अवस्था शेखचिल्ली जैसी हो गई है। जिस पर्यावरण में हम उसीके सहारे जी रहें है ऊसिको हम बडे पैमाने पर नुकसान पहुँचा रहे है और अपनेही पैरोंपे हम खुद कुल्हाडी मार रहे हैं।शहरीकरण , रास्तों का विस्तारीकरण के नाम पर बेशुमार वृक्षतोड करके हम वहाँपर सिमेंट का जंगल बसा रहे हैं। धरणोंके नामपर अनेक एकड जमींन पाणी के नीचे गवाँ रहे हैं। साथ ही साथ बढती आबादी का परीणाम भी पर्यावरण पर पड रहा है। ईन सबका परीणाम पर्यावरण असंतुलन में हो रहा है।
पर्यावरण के मानवनिर्मित और प्रर्कतीनिर्मीत ऐसे दो प्रकार होते हैं। धर्म , संस्कृती, बढती आबादी, सामाजिक और आर्थिक ये सब मानवनिर्मित पर्यावरण में आते है। प्रकृती निर्मित पर्यावरण में सजीव और निर्जिव ये दो घटक आतें हैं। प्राणी, वनस्पती और सूक्ष्मजीव ये सजीव घटक तो मृदावरण,जलावरण , वातावरण ये निर्जीव घटक आते हैं। लेकीन ये सब मानव के रहन - सहन के गलत ढंग के कारण मानव और बाकी सजीवोंका अस्तित्व खतरेमें है। मानव निस्वार्थीभाव से अगर रहें तो ईस धरती का आक्रोश हमें सुनाई देगा और और वह विनाश की ओर जा रही है ,वह नही होगी। वातावरण के ओझोन स्तर के कारण सूरज की अतीनिल कीरणें सिधे धरतीपर नहीं आती।लेकीन आजकल हरितगृह से निकलनेवाला CFC याने क्लोरोफ्लोरो कार्बन के कारण ओझोन के स्तर को नुकसान पहुँच रहा है , जिसके कारण मानव को त्वचारोग,कर्करोग जैसै बिमारीयोंका सामना करना पड रहा है।
ईसके लिए हमें क्या करना चाहीए ? हमें पर्यावरण के विविध घटकोंको सँभालना है ।अपना परिसर ,पानी के जलाशयोंकों शुद्ध रखना चाहीऐ । जमीन,पानी और जंगल का सनवक्षण और संवर्धन करना चाहिए । हमें ईको फ्रेंडली रहना चाहिए। ग्रामीण हो या शहरी कीसी भी प्रकार का प्रदूषण हमें नही करना है। वृक्षोंको बडे पैमानेपर लगाना चाहिए। जनजागृती, यातायात के साधनोंके आवाज आधुनिक तंत्रज्ञान का ऊपयोग करके कम करना चाहिए।
सरकार तो प्रयास कर रही है , हमें भी पर्यावरण रक्षण हमारा कर्तव्य है ऐसा समझकर सजग रहना चाहिए।प्रकृती हमें भरपूर मात्रा में देती रहती है। क्या हम ऊसके रक्षण हेतू ईतना भी नही कर सकते ? कर सकते है , सिर्फ मन में लाने की देरी है।
हरीभरी हरियाली चहूओर
देगी जीवन को नया मोड
करना होगा संकल्प मानव
न करेगा तू कभी वृक्षतोड.
लेखिका
श्रीमती माणिक नागावे
कुरुंदवाड ,ता. शिरोळ,
जिल्हा. कोल्हापूर.
9881862530
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