छत्रपती शाहू महाराज
राजर्षी शाहू महाराज का जन्म 26 जून 1874 को कोल्हापूर मे हुआ। उनके पिता का नाम आबासाहब और माता का नाम राधाबाईसाहब था। महाराज का मुल नाम यशवंतराव था।वे कागल के घाटगे घराने के थे। बाद में उन्हें आनंदीबाईसाहबने गोद ले लिया और उनका नाम शाहू रखा। श्री. फ्रेजर के मार्गदर्शन में उनकी शिक्षा शुरू हुई।शिक्षख पूरी होने के बाद 2 एप्रिल 1894 में उन्होंने राज्य का कारोभार हाथ में ले लिया। उनका सामाजिक, सांस्कृतीक, शैक्षणिक कार्य में सहभाग अच्छा था। उन्होने पहचान लिया था कि अगर अपने समाज को आगे लाना है तो उन्हे शिक्षा की जरूरत है। शिक्षा का मौका सबको मिले इस लिए उन्होंने बहुत बडा प्रयास किया। महात्मा फुले के विचार अपने जीवन में मार्गदर्शक समझकर शिक्षा का प्रचार करने का मूलभूत कार्य किया। शाहू महाराज का शैक्षणिक कार्य उनके प्रजा को दिया हुआ एक अनमोल उपहार है। अनेक बरसों से ज्ञान के प्रकाशासे वंचित रहे दलित समाज के बच्चों में ज्ञान की ,शिक्षा की चाहत पैदा की। वे जातियता को नही मानते थे। देहात से आने वाले बच्चों को आने जाने में दिक्कत न हो इसलिये उन्होने बच्चों के लिए वसतीगृह बनाएँ। बहुजन समाज जादा मात्रा में होने पर भी सिर्फ ब्राह्मण लोग ही शिक्षा प्राप्त करते थे। इसलिये महाराज ने देहात के बहुजन समाज के बच्चो के लिए कोल्हापूर में पाठशालाएँ और कॉलेजीस सुरू कीये। गरीबी के कारण शिक्षा का खर्चा नहीं करने के कारण लोग अपने बच्चों को स्कूल नहीं भेजते थे यह देख कर महाराज ने उन बच्चों के लिए शिष्यवृत्ती देने की घोषणा कर दी। और वसतिगृह में उनके खाने की और रहने की व्यवस्था भी की। कई लोगों ने उन्हें विरोध किया। लेकिन उन्होंने किसी की एक न सुनी। और अपना कार्य शुरू रखा। प्राथमिक शिक्षा को अनिवार्य और मोफत देने की घोषणा की। उनके इस प्रयास से धीरे धीरे छात्रों की तादाद बढ़ गई। अस्पृश्य लोगों को शिक्षा देकर उनके मन में स्वतंत्रता और स्वाभिमान प्रज्वलित किया। शिक्षा का महत्व वे जानते थे। स्त्री शिक्षा पर जोर दे दिया। स्त्रियों को फिस में सहूलियत दी। महात्मा फुले का आदर्श उनके सामने था। स्त्री शिक्षा देने के पीछे उनका यह विचार था कि स्त्रियोनको शिक्षासे अच्छा- बुरा, योग्य -आयोग्य की पहचान हो जाए। उन्हे स्त्री- पुरुष समानता हक मान्य था। और वह हक स्त्रियां अच्छे तरीके से अपने जीवन में लाए ऐसा उनका प्रयास था। शाहू महाराज ने सत्ता और संपत्ति का उपयोग अस्पृश्य और दलित समाज के शैक्षणिक कार्य के लिए इस्तेमाल किया। इसीलिए तो कोल्हापूर जो
" दक्षिण काशी " के नाम से पहचाना जाता था वह " शिक्षण काशी" के नाम से पहचाना जाने लगा। महाराज ने शिक्षा का उपयोग समाज परिवर्तन के लिए किया। शिक्षण महर्षी कर्मवीर भाउराव पाटील उनके स्फूर्तीस्थान थे। सामान्य स्कूलों के साथ साथ ही उन्होंने सैनिक प्रशाला, लश्करी प्रशाला और टेक्निकल स्कूल की निर्मिति की। आज भी शिवाजी विद्यापीठ सांस्कृतिक केंद्र और विद्या का केंद्र माना जाता है। शिक्षा और ज्ञान यह सामाजिक बदलाव की शक्ति है वह एक प्रगति के रथ की और समता की चाबी है, साथ ही साथ उद्योग की जननी है। शिक्षा ही उत्कर्ष की महत्वपूर्ण चाबी है यह पहचान कर उन्होंने शैक्षणिक कार्य से और अपने विचारों से समाज में बहुत बड़ा बदलाव लाया और ब्राह्मणेतर लोगों को ब्राह्मण वर्ग लोगों के साथ लाकर बिठाया। ऊंच-नीच का भेदभाव दूर किया। समाज में जागृति फैलाई।खेती को पानी के लिए उन्होने राधानगरी जैसे का धरण भी बनवाएँ। व्यापार के लिए जयसिंगपूर जैसे सुंदर शहर भी बनवाएँ।जातीभेद नष्ट हो इसके लिए उन्होंने खुद एक दलित को होटल शुरु करके दिया और खुद उनके होटल में वे चाय पिने जाने लगे।ऐसे वे एक महान राजा थे।साथ ही साथ महाराज एक महान समाज क्रांतिकारक ,शिक्षण प्रसारक ,गरीबों के मसीहा ,आधुनिकता का पुरस्कर्ता ,अस्पृश्योंके बंधू, स्वातंत्र्य-समता-बंधुता के प्रचारक,सब लोगोंके चहीते थे।6 मे 1922 में उनका देहांत हुआ।लेकीन उनके कार्य से वे आज भी जिंदा है।उन्हें शतशत प्रणाम।
लेखिका
श्रीमती माणिक नागावे
कुरुंदवाड.
No comments:
Post a Comment