Monday, 1 October 2018

हिंदी लेख ( महात्मा गांधीजी और लालबहादूर शास्त्री जी )

स्वतंत्रता संग्राम के दो सितारे

मोहनदास करमचंद गांधी, हमारे राष्ट्रपिता, हमारे प्रिय बापू जिन्होंने पूरी दुनिया को अहिंसा का मंत्र दिया और बिना हथियार के ,बिना कीसी हिंसा से विजयश्री, सफलता प्राप्त की जाती है यह बताया।शायद ही कीसी और ने ऐसा कीया हो। सत्याग्रह के माध्यमसे उन्होंने अँग्रेजोंको हिला दिया था। भारत के स्वतंत्रता आंदोलन में उनका नाम अग्रणी लिया जाता है। उनके स्वतंत्रता आंदोलन से प्रेरित होकर   डेढ सौ वर्षोंतक भारत में अपना राज्य खडा कीया था उसे भारतवासियोंने नेस्तनाबूत कीया था। १९१५ में सबसे पहले राजवैद्य जीवराम कालीदास ने गांधीजी को महात्मा कहकर पुकारा। इसतरह जनता ने ऊन्हें महात्मा का पदनाम दिया। ६ जुलाई १९४४ को सुभाष बाबू ने रंगून रेडिओ से गांधीजी को राष्ट्रपिता कहकर संबोधा। बापू याने पिता,पूरे भारतवासियोंके वे पिता थे।ईसलिए उन्हें बापू भी कहा जाता है। उनका २ अक्तूबर यह जनमदिन भारत में गांधी जयंती के रुप में मनाया जाता है। और पूरे विश्व में अंतरराष्ट्रीय अहिंसा दिवस के नाम से मनाया जाता है। लंदन के युनिव्हर्सिटी कॉलेज में उन्होंने अपनी शिक्षा पूरी की। प्रवासी वकील के रुप में जब वे दक्षिण अफ्रिका में गए तब वहाँ उन्होंने वहाँ भारतीय समुदाय के लोगों के अधिकार के लिए सत्याग्रह कीया। १९१५ में जब वे भारत पहुँचे तो यहाँ के किसानों,मजदूरों और दलितोंपर होनेवाले अन्याय को देखकर उनका जी रो उठा।वे उनके हक के लिए लडने लगे। १९२१ में भारतीय राष्ट्रीय काँग्रेस की सहायता से उन्होंने गरीबी हटाने के लिए,महिलाओंके अधिकारों के लिए,अस्पृश्यता के विरोध में,स्वराज्य के लिए,विदेशी हटाव- स्वदेशी बचाव, नमक का सत्याग्रह, भारत छोडो आंदोलन जैसे कार्य देश के लिए कीए।

  अहिंसा और सत्य का साथ उन्होंने जीवनभर नहीं छोडा। चरखेपर सूत कातकर वह खुद कि सादा पोशाख खुद बनाकर पहनते थे।उनका जीवन सादगी का ऊत्तम ऊदाहरण है। साबरमती के आश्रम की स्थापना की। किसी को कुछ कहने से पहले वह स्वयं उसे अपने आपपर आजमाकर देखते और उसके पश्चात दुसरोंको करने को कहते।आज यह कहीं भी नहीं दिखाई देता। उनकी आत्मकथा " सत्य के प्रयोग " में उन्होंने ऊनका सारा जीवनपट बेझिझक सबके सामने खोला है।यह और कोई नहीं कर सकता।जो आज सराहनीय और अनुकरणीय है।आज के इस द्वेषपूर्ण ,जातिय दंगल के जमाने में गांधीजी के सत्य और अहिंसा के तत्वों की बडी आवश्यकता है।

भारत के प्रधानमंत्री के पदपर अठारह महिने रह चुके लालबहादूर शास्त्री का जन्म भी २ अक्तूबर १९०४ को हुवा था। बदकीस्मतीसे उन्हें उनके पिता का प्यार भी अठारह महिने ही मिला,क्योंकी उनके पिता का देहांत हो गया।ननिहाल में रहकर उन्होंने प्राथमिक शिक्षा पूरी कीऔर बाद में काशी विद्यापीठ से शास्त्री की उपाधी प्राप्त की।भारत सेवक संघ से जुडकर उन्होंने देशसेवा का व्रत लिया इसतरह उनके राजनैतिक जीवन का प्रारंभ हुवा।भारतीय स्वाधीनता संग्राम में महत्वपूर्ण कार्य कीया। कई बार वे जेल भी गए। ९ अगस्त १९४२ को ईलाहाबाद पहुँचकर भारत छोडो आंदोलन में बडी चतुराई दिखाई और क्रांती को बडा रुप दिया। कई बार भूमिगत रहकर भी स्वतंत्रता आंदोलन का कार्य कीया। इसतरह सफलता की सिढीयाँ चढते चढते वे नेहरु जी के मंत्रीमंडल के गृहमंत्री तक जा पहुँचे। और नेहरुजी के निधन के पश्चात भारत के प्रधानमंत्री भी बने।तब भारत में जो पूँजीपती थे वे देशपर हावी होना चाहते थे। तो दुसरी तरफ पाकिस्तान ने भारत पर हमला बोल दिया।युद्ध में भी शास्त्री जी ने अच्छा नेतृत्व कीया।उन्होंने देश को जय जवान- जय कीसान का नारा दिया। जनता का मनोबल बढाया,और देश को एकजूट बनाकर युद्ध का डटकर सामना कीया। लेकीन उनकी बदकीस्मतीसे रुस और अमरिका के मिलीभगत से शास्रीजी पर दबाव डाला गया और ऊसी सिजीश की तहत उन्हें रुस बुलवाकर ताश्कंद के समझौते के दस्तावेज पर जबरन उनके हस्ताक्षर लिए गए। शास्त्री जी ने हस्ताक्षर तो कीया लेकीन उनके दिलपर एक बोझ सा आ गया।वे बहोत उदास हो गए।हस्ताक्षर करने के बिद कुछ ही घंटो में उनका देहावसान हो गया।वे ईस दुनिया से चल बसे।उनकी मौत एक रहस्य बनकर रह गई।सादगीपूर्ण और ईमानदारी का जीवन जीने वाले शास्त्री जी की मृत्यू दिल को दुख दे गई।

इन दो हस्तियों का जनमदिन एक ही दिन है यह संजोग की बात है।और दोनों का जीवन भी एक जैसा है।और दोनों की मृत्यू भी दिल को छू लेनेवाली,दिल को रुलानेवाली थी।ईन दो महान हस्तियोंको मेरा लाख लाख वंदन.

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