नवनिर्माण की जननी
आदिमाया आदिशक्ती तू,
तू है नवनिर्माण की जननी ।
कोख से तेरे जनमे हैं,
परमवीर और महाग्यानी।
संभालती है तू खुशियों से,
तुझे प्यारी इज्जत दोनों घरों की।
वार देती है तु अपनी खुशियाँ,
संवारती है जिंदगी अपने पुत्रों की।
पढलिखकर बनाया अपना जीवन,
पढाया बच्चों को महत्व जानकर।
खुद सहकर सारी जिल्लतें,
दूसरों को हँसाया अपना मानकर।
किया पदार्पण हर क्षेत्र में,
चढकर कामयाबी की सिडियाँ।
नही अब कोई क्षेत्र दुजा अलग,
छोड दी है तुने सारी पाबंदीयाँ।
धरती से लेकर आकाश तक,
बढाया तुने विश्वास से कदम।
तोडकर गुलामी की शृंखलाएँ,
बढ रही है आगे तू हरदम ।
नौकरानी से लेकर भगवान तक,
सफर तुम्हारा अनोखा है ।
बडी मुद्दत से तूने पाया है,
प्यार और स्नेह का सलीका है।
गजगामिनी से रणरागिनी तक,
सफर तुम्हारा है मनोरंजक।
लेकर तलवार हात मे अपने,
बचाई है अपनी इज्जत की संदूक।
न तू अबला , है सबला,
तेरी हिम्मत तेरी ताकत है।
पहचानना तुझे अपनी उर्जा है,
बलबूते पर अपने खड़े रहना है।
कवयित्री
श्रीमती माणिक नागावे
कुरुंदवाड, जिल्हा. कोल्हापूर
9881862530
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