Saturday, 2 March 2019

हिंदी लेख ( महिला दिन )

आज 8 मार्च अंतर्राष्ट्रीय महिला दिन पूरे विश्व में बड़े हर्षोल्लास के साथ मनाया जा रहा है।   क्लारा  झेटकी  ने सर्वप्रथम आंदोलन किया और इस महिला दिन की शुरुआत की। धीरे-धीरे पूरे विश्व में यह मनाया जाने लगा।

   आदि काल से हम देखते हैं तो स्त्रियों का बड़ा महत्व था।मातृसत्ताक पद्धति थी। स्त्रियों को आदि शक्ति ,आदि देवता माना जाता था। तब भी स्त्रिया सुशिक्षित थी । गार्गी, मैत्रेयी, लोपामुद्रा  ऐसी ब्रह्म वादिनी  स्त्रिया  वाद विवाद में पंडित पुरुषों को भी हराया करती थी।इतिहास में भी कर्तृत्ववान महिलाएं हो गई है, जैसे कि झांसी की रानी, जीजाऊ, अहिल्याबाई होलकर ,  आज के युग में भी सावित्रीबाई फुले, इंदिरा गांधी, प्रतिभा ताई पाटील किरण बेदी ऐसी महान स्त्रियां होकर गई है। उन्होंने अपना जीवन संघर्ष में बिताते हुए भी सफलता प्राप्त कि।
आज की स्त्री सुशिक्षित है, अबला ना होकर सबला है। वह अपना खुद का काम खुद कर सकती है। लेकिन इसके लिए महिला को कुछ अपने में बदलाव लाना चाहिए। जो भी समय उसे मिलता है उसे अच्छे कामों में लगाना चाहिए। एक दूसरे को समझ लेना चाहिए। मिल जुल कर रहना चाहिए।  मां- बाप साँस- ससुर इन्हें अच्छी तरह से संभालना चाहिए। अपना कीमती समय टीवी देखने में बर्बाद ना करते हुए, अपने भविष्य काल की पूंजी अपने बच्चे हैं इनपर, इन्हें संस्कार करने में व्यतीत करना चाहिए ।  बच्चे हमारा ही अनुकरण करते हैं। इसलिए हमें हमेशा संस्कार से जीना चाहिए तभी हमारे बच्चे हम से कुछ सीख पाएंगे। आज हम देखते हैं कि महिलाओं के लिए अनेक कायदे कानून बनाए गए हैं। उनका इस्तेमाल समझकर सही तरीके से करना चाहिए।498 अ  घरेलू हिंसा  विरोधी का कायदा सचमुच में क्या है यह समझ लेना चाहिए। और उसका इस्तेमाल  सही ढंग से करना चाहिए। महिला समुपदेशन केंद्र, महिला दक्षता समिति  बनाई गई है। इनके सहायता से अपने खुद की समस्याएँ सुलझाना चाहीए। एक स्त्रीअनेक रिश्ते संभाल सकती है। यह उसे परमेश्वर की देन है। हम देखते हैं कि मेधा पाटकर, मंदाताई आमटे इनका कार्य अवर्णनीय ,अविस्मरणीय है।उनसे प्रेरणा लेकर स्त्री को अपने इर्द-गिर्द खुद ही एक रेखा खिंचनी चाहिए  और खुद को समाज में जो दुष्ट रावण है उनसे अपने आप को सुरक्षित रखना चाहिए। आज के विज्ञापन युग में स्त्री का इस्तेमाल बहुत गलत तरीके से होता है यह अच्छी बात नहीं है। इस पर भी स्त्रियों को विचार करना आवश्यक है। खुद को एक शोभिवंत गुड़िया ना बना कर , खुद को बिकाऊ नहीं बनाना चाहिए। आज स्त्रीके साथ साथ पुरुषों को भी बदलना चाहिए। आज समाज में जितने भी आह्वान हैं उन पर ,उन समस्याओं को बड़े गंभीरता से और कौशल्यता से हमें उनका सामना करना चाहिए। खुद में जो कला है उसे विकसित करना चाहिए आज के नवयुग में जो भी बदलाव आए हैं उन्हें स्वीकार कर नए आव्हानों का सामना करना चाहिए। जीवन में सफलता पाने के लिए नियोजन, संवाद ,सामाजिक कौशल, सादरीकरण, ध्येय निश्चिती , विचार वैभव, इच्छा शक्ति, आत्मविश्वास, कल्पना शक्ति ,व्यवहार ज्ञान बढाना चाहिए।  डॉ. ए.पी.जे. अब्दुल कलाम कहते हैं कि, low aim is a crime.  इसलिए हमें हमेशा अपना ध्येय ऊँचा रखना चाहिए।जब भी हमें असफलता प्राप्त होती है तब दुखी ना होते हुए हमें गंभीरता से फिर से बार-बार प्रयास करना चाहिए और संयम रखना चाहिए। सिंधुताई सपकाल ने बडा संघर्ष किया और आज वह जो पहले कभी खुद अनाथ थी ,आज अनेक अनाथ लोगों की मां, माता बन चुकी है लोग उसे प्यार से " माई " कहते हैं। मन- कलाई -दिमाग का सही इस्तेमाल करके हर एक काम में सौंदर्य निर्माण  करना चाहिए। अंधश्रद्धा की श्रंखला में खुद को न बाँधते हुए अपने अंतरंग का विकास करना चाहिए। इसके लिए विचार करना आवश्यक है ,और हमेशा के लिए अपना जीवन सुखमय बनाना चाहिए। आत्मविश्वास, इच्छाशक्ति,  सकारात्मकता, और क्रियाशीलता ,महत्वाकांक्षा यह महिला की शक्ति बढ़ाने के साधन है। इनका उपयोग कर लेना चाहीए।स्त्री भ्रूण हत्या न करके अपने बेटी को बड़े सम्मान के साथ उसे इस दुनिया में लाना है, उसका विकास करना है।

आज महिलाओं के सामने यह समस्या है कि -स्त्री- पुरुष असमानता ,महिलाओं की असुरक्षितता, महिलाओं पर अन्याय, अत्याचार, कुपोषण ,आत्मविश्वास का अभाव ,आचार में आधुनिकता लेकिन विचारोंमें  कमी। इसे हमें आज बदलना है। आज की स्त्री काम के लिए घर से बाहर जा रही है, घर संभाल रही है। महत्वपूर्ण बात यह है की सरकार ने जितने भी  स्त्रियों के लिए शासकीय योजनाएं बनाई गई है उसे समझ लेना चाहीए। पढ़कर उन्हें आत्मसात करना है। और खुद समझ कर दूसरों को भी समझाना है। स्त्री को खुद को कभी भी हीन न समझ कर जो अपने में सामर्थ्य है इससे जीवन जीना है। आज हम देखते हैं कि हर एक क्षेत्र में स्त्री ने अपना पाँव जमा रखा है। इसमें वह यशस्विनी भी हो गई है। उसने अपनी खुद की पहचान खुद बनाई है। और अपने सामर्थ्य और हिम्मत के सहारे वह आकाश को भी छूने जा रही है। उसे ऐसे ही आगे आगे बढ़ाना है, प्रोत्साहित करना है।

माँ तू ममता तू ,
हरएक का सहारा तू।
बिनतेरे ये दुनिया उदास,
जन्नत का रास्ता है तू ।

लेखिका
श्रीमती माणिक नागावे
कुरुंदवाड, जिल्हा. कोल्हापूर
9881862530

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