बारीश
देख रहे हैं राह तुम्हारी ,
आस लगाए बैठे है |
जरुरत है तुम्हारी सबको ,
क्यों तुम ऐसे ऐंठे हो |
बिना तुम्हारे दशा हो गई है ,
संसार अधुरा तेरे बिना |
बरसो मेघा अब तो आवो ,
आँगन मेरा पडा है सुना |
कीसान तो है तेरे भरोसे ,
मेहनत बेकार न जाए अब |
बिज अंदर पुकार रहा है ,
पानी हमें मिलेगा कब ?
बरसो अब , नखरे ना दिखा
पेड बहुत हम लगाएंगे |
वादा न तोडेंगे कभी हम ,
हरीभरी धरती सदा करेंगे |
रचना
श्रीमती माणिक नागावे
कुरुंदवाड , ता.शिरोळ ,
जि. कोल्हापूर ,416106
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