जबतक दिलकी धडकनें शुरु हैं, तबतक ही मानवी शरीर को कीमत है। नहीं तो ये शरीर मुर्दा,बेजान और बेकार कहलाता है। उसितरह जबतक हमारे मनमें सामाजिक खयालोंके प्रती धडकन शिरकत नहीं करती,दिलमें अंगार नहीं भरतीहमें बेचैन नहीं करते तबतक यह जिस्म दर्दहिन,नामर्द कहलाता है। लेखिका प्राजक्ता पाटील की कीताब "स्पंदन " ( धडकनें ) में यह सामाजिक स्पंदनें दिखाई देती हैं। पढते समय लेखिकाकी रहम करनेवाली सोच, तो कभी सामाजिक हालात के खिलाप बगावत करनेवाली,तो कभी ईसमेंसे रास्ता सुझानेवाली ऐसे अनेक रुप सामने आते हैं। अपने पिताजीसे मिले हुए खुद्दारी के बिज दिलमें बोकर अपने छात्रोंमें मुस्तकबिल बनाने के साथ साथ समाजमें नजर आई सामाजिक सवालोंको देखकर उनका मन दुखी होता हुआ दिखाई देता है, तो कभी हालातोंपर वह हल निकालती हुई दिखाई देती है।
मा.इंद्रजीत देशमुखजी,पुर्व अतिरिक्त कार्यकारी अधिकारी, कोल्हापूर ,इनकी प्रस्तावना मिली हुई " स्पंदन " यह कीताब पढनेवालोंको सचमेंही विचारप्रवण बनाता है। सामाजिक अनेक नासूर बने सवालोंके उपर ,जिसमें स्त्री-भ्रुणहत्या, प्रेमविवाह, ब्लू व्हेल गेम, निर्भया, कीसान को दुल्हन ना मिलना,एकतर्फा प्यार- एक सोच, संस्कृती की ऐसी की तैसी, दवाईयोंके बोझ तले जीना मुश्कील हो गया है,ऐसे विषय के माध्यम से लेखिका ने समाज के सामने अपने लेखनद्वारा प्रकाश डाला है। ऊसीतरह गुरु की महानता,मेरा महाराष्ट्र, ये मेरा देश है इसका खयाल रखो, भारतीय संस्कृती, महाराष्ट्र के नवयुवकोंका स्थान, वजूद के संघर्ष में तणाव को दूर करके लंबी उम्र हासिल करो,बच्चोंका बचपन गुम हुआ है, मराठी हमारी मायबोली, अध्यापकोंकी बदलती भुमिका- समय की माँग,धार्मिक क्षेत्रोंकी वास्तविकता,पावित्र्य और सफाई, वृक्षवल्ली हमारे संबंधी, इन लेखोंद्वारा लेखिकाका सामाजिक खयाल और आंतरिक हलचल दिखाई देती है।इसमें उन्होंने सामाजिक समस्याओंपर प्रकाश डाला है। महत्वपूर्ण बात यह है की ऊन्होंने इसपर उपाय भी बतायें है। विज्ञान की अध्यापिका होने के कारण खून का दान (रक्तदान) का महत्त्व वे जानती है। कायक रक्त, रक्त दासो, इसमेंसे वह प्रकट होता है। रसायनशास्त्र और मानवीजीवन, चंद्रयान और अपेक्षा और परिणाम ( वेध ) जलसहयोग मद्दे और आव्हान, अणुऊर्जा सामर्थ्य और धोखे,इन लेखोंद्वारा परीपूर्ण जानकारी देने का इमानदारपूर्वक प्रयास कीया है। लेखिकाकी लेखनशैली भी प्रभावी, प्रवाही और अच्छी है।मनमें आए हुए खयालोंको सहज रुप में प्रकट कीया है। " स्पंदन " के माध्यमसे अत्यंत सटिक भाषा में लिखा है। मुखपृष्ठ पर दिखाई देनेवाले बंदिस्त तितलियाँ बडे ऊल्हास से, मुक्तभावसे बाहर आकर अपने खयालरुपी पंखोंको फडफडाकर अपने मनके खयालोंका प्रसार कर रहे हैं यह बडे समर्पक भाव से दर्शाया गया है। लेखिकाके मनका ही यह प्रतिबिंब है, जो इस किताब के रुप से प्रकट हुआ है। सामाजिक कार्य करनेवाले लोगोंके साथ साथ युवावर्ग को भी इस किताब ने विचारप्रवण बनाया है। महाराष्ट्र शासन का अनुदान प्राप्त यह किताब कवितासागर प्रकाशन ,जयसिंगपूर के प्रकाशक डॉ. सुनिलदादा पाटीलजीने लेखसंग्रह अत्यंत आकर्षक रुप में प्रकाशित कीया है। उनका भी गौरव करना चाहीए। ऐसेही मार्गदर्शन लेखन आनेवाले भविष्यकाल में भी लेखिका की तरफ से हों ऐसी शुभकामनाएँ । ऊनकी कलम ईसीतरह और मुक्कमल हासिल करती जाए।
किताब परीक्षण
श्रीमती माणिक कल्लाप्पा नागावे
कुरुंदवाड. जिला.कोल्हापूर
9881862530
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