Monday, 22 June 2020

हिंदी कविता ( बारीश )

प्रतियोगिता के लिए

बारीश

बारीश का मौसम सुहावना,
लगता है कभी-कभी डरावना।
जोरशे बादल ऐसे बरसे,
देखते ही रह गया सारा जमाना।

पशुपक्षी सब भिगकर सिकुडे,
थंड से काँपने लगे थरथर।
है जरुरत खाने की उन्हें भी,
देना चाहिए उन्हें पेटभर।

बहने लगे सारे जलस्त्रोत,
उफान धरती पर नदीका।
बरसात की बुँदोंको लपेटकर,
दौडणे लगा कीनारा सागरका।

धरती ने ली अंगडाई देखो,
रुप निखरा फलफुल पत्तोंसे।
बोले कोयल कुहुकुहु बानी,
सुमधुर लगे पुराने कीश्तोंसे।

बरखा बरसीँ झमझमसे,
आये नये आयाम जीवनको।
हँसीखुशी से स्विकार करो तुम
तणावरहित जीवन जीनेको।

कवयित्री
श्रीमती माणिक नागावे
कुरुंदवाड, जिल्हा. कोल्हापूर

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