आद्य नाटककार विष्णुदास अमृतराव भावे
साहित्य क्षेत्र में अनेक विधायें है। उनमें से नाटक एक विधा ऐसी है जो लोग प्रत्यक्ष रूप में मेहसूस करते हैं। जो लोगों के दिलों में जा बसता है। नाटक लिखना इतना आसान भी नही है। नाटककार की प्रतिभा यहाँ महत्त्वपूर्ण होती है। ऐसे ही एक प्रतिभासंपन्न नाटककार हैं विष्णुदास अमृतराव भावे। वे मराठी के नाटककार हैं।उन्हें नाट्यपरंपरा का जनक, और महाराष्ट्र नाट्य कला का भरतमुनी कहकर पहचाना जाता है। उनका जन्म 9 ऑगस्ट 1819 को महाराष्ट्र के सांगली मे हुआ। उनके पिता अमृतराव सांगली संस्थान के राजा पटवर्धनके दरबार में काम करते थे। विष्णूदास बचपन से ही अत्यंत बुद्धिमान थे। वे हस्तकला मे प्रवीण थे। बहोत बारीकी से कलाकुसर का काम करके वे लकडी कि गुडियाँ बनाते थे।और उन गुडीयोंद्वारा नाटक का प्रयोग करने का उनका सपना था। भानुदास जी को कविता, कथा लिखने का शौक था।1842 को कर्नाटक से भागवत मंडली सांगली में आई थी। उन्होंने "कीर्तन खेल "द्वारा अपने नाटक का प्रयोग दरबार में किया। यह देखकर ऐसा ही नाट्यप्रयोग हम मराठी में शुरू करेंगे ऐसा विचार विष्णुदासजी के पिताजी के मन में आया।उन्होंने विष्णुदास को अपना मानस बताया। विष्णुदास भी ऐसे कीर्तन खेल करें ऐसा उनके पिताजी चाहते थे। आगे चलकर चिंतामनराव पटवर्धन के प्रोत्साहन से भावेजीने 1843 को " सीता स्वयंवर " यह मराठी का पहला नाटक रंगमचपर पेश कीया। 5 नवंबर 1883 को सांगली संस्थान के महल के दरबार हॉल में नाटक का पहला प्रयोग हुआ।सबको वह बहोत पसंद आया।आगे चलकर रामायण के विषयों पर विविध विषयोंपर विष्णुदास जी ने दस नाटक लिखे और उनके प्रयोग भी सफलतापूर्वक संपन्न किए। उनके अनेक नाटक पद्यमय और आख्यानक रचनासे संबंधित थे। उन्हें नाट्याख्याने भी कहा जाता था।उनके पचास से भी अधिक नाट्याख्याने और कवितासंग्रह प्रकाशित हुये हैं। मराठी पौराणिक नाटक लिखनेवाले लोगों को विष्णुदास के पदों का उपयोग आज भी होता है। विष्णु दासजी ने " इंद्रजीत वध" "राजा गोपीचंद " "सीता स्वयंवर "नाटकों का लेखन और दिग्दर्शन भी किया। चिंतामनराव पटवर्धन उन्हें हमेशा आर्थिक मदद करते थे।लेकीन उनके निधन के बाद विष्णुदासको आर्थिक मदद मिलना बंद हो गयी। इसलिए उन्होंने अपना नाट्यप्रयोग करना 1862 को बंद कर दिया। अपने खुद के बनाए हुए लकडी के गुड़ियों के साथ नाटक करने का उनका जो सपना था वह आगे चलकर रामदास पाध्ये और उनकी पत्नी ने पूर्ण किया। उन दोनों ने मिलकर विष्णुदास का लिखा हुआ सीता स्वयंवर नाटक का प्रयोग गुड़ियों के द्वारा लोगों के सामने पेश किया। विष्णुदास भावे जी ने अपना बाकी का समय सांगली में ही बिताया। हर साल 5 नवंबर यह दिन "मराठी रंगभूमी दिन " के तौर पर मनाया जाता है। क्योंकि इसी दिन विष्णुदास भावेजीने 1843 को सीता स्वयंवर नाटक सबसे पहले रंगभूमि पर सादर किया था। इस घटना के स्मरण रूप से राज्य में 5 नवंबर " मराठी रंगभूमी दिन " मनाया जाता है ।इसतरह मराठी नाटक का स्मरण होता है।ऐसे महान नाटककार की मृत्यु 9 अगस्त 1901 को हुई। उन्हें शत-शत प्रणाम।
लेखिका
श्रीमती माणिक नागावे
कुरुंदवाड, जिल्हा. कोल्हापूर.
9881862530
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