Wednesday, 20 November 2019

आंतरराष्ट्रीय पुरुष दिन

अंतर्राष्ट्रीय पुरुष दिन

 ऐसा कहा जाता है कि स्त्री और पुरुष दोनों एक सिक्के के दो बाजू है। सही है, स्त्री और पुरुष दोनों ही संसार में आवश्यक है। बिना स्त्री के पुरुष और पुरुष के बिना स्त्री की कल्पना भी नहीं की जा सकती। अगर यह दोनों एक साथ चलें , एक दूसरे का सम्मान करते हुए रहते हैं तो संसार के बहुत सारे दुख कम होंगे। और तो और परिवार में भी सुख शांति आएगी। प्राचीन भारत में मातृसत्ताक पद्धती थी। स्त्री को बड़ा सम्मान था। लेकिन धीरे-धीरे वह चार दीवारों के दब गई। उसके विकास के लिए, स्वतंत्रता के लिए 8 मार्च जागतिक महिला दिन के तौर पर मनाया जाने लगा। महिला बाल कल्याण की तरफ से भी स्त्रियों के उन्नति के लिए प्रयास किए जाने लगे। लेकिन पुरुषों के लिए भी कोई दिन मनाना आवश्यक है इसकी जरूरत कभी किसी को नहीं पड़ी। क्योंकि भारत में पितृसत्ताक पद्धति होने के कारण इसकी कभी जरूरत ही नहीं पड़ी। इसका मतलब यह नहीं कि पुरुष हमेशा ही हर जगह सशक्त और बलवान हो। उसकी कोई समस्या नहीं हो। ऐसा नहीं है। आजकल स्त्रीयों की तरह पुरुषों की अवस्था भी सोचने लायक बन गई है। परिवार का पुरुष हमेशा से अपने परिवार की जिम्मेदारी अपने ऊपर लेता है। अपने परिवार के लिए वह हमेशा सजग रहता है। अपने परिवार को खुश रखने के लिए वह अपना दुख अलग रखकर प्रयास करता है। स्त्रियां हमेशा से ही अपना दुख एक दूसरे के साथ, घरमें पती के साथ, बच्चों के साथ साझा करती है। और अपना दुख कम करती है। लेकिन क्या पुरुष ये सब कर सकते हैं?  ऐसा बहुत कम मात्रा में होता है। स्त्रियों की तरह पुरुषों को भी कई समस्याएं, परेशानियाँ होती है। लेकिन वह हाथ पर हाथ धरे बैठ कर चुप नहीं बैठते। उस समस्या का हल ढूँढता है। आज के आधुनिक युग में स्त्रियां तो बहुत आगे आ चुकी है। धीरे-धीरे पुरुषोंपर निर्भर रहना कम हो गया है। इसमें कोई गलत बात नहीं है। लेकिन कई जगह हम यह देखते हैं कि स्त्री और पुरुष में तकरार हो रही है। कई जगहों पर पुरुषों को सताया भी जा रहा है। यह अच्छी बात नहीं है।  स्वतंत्रता का मतलब स्वैराचार  नहीं है। स्त्री और पुरुष दोनों मिल जुल कर रहते है तभी परिवार का अच्छा हो जाता है। बच्चों पर अच्छे संस्कार हो जाते है। पुरुषों की समस्याएं, परेशानियाँ खुले तौर पर चर्चा होने के लिए 19 नवंबर को अंतरराष्ट्रीय पुरुष दिन मनाया जाने लगा। 2007 में भारत में सेव इंडियन फैमिली नाम की पुरुष अधिकार संस्था ने इसकी शुरुआत की। ऑल इंडियन मेंस वेलफेयर एसोसिएशन ने  महिला विकास मंत्रालय की तरह पुरुष विकास मंत्रालय  और पुरुष आयोग का गठन करने की माँग की।  19 नवंबर यह दिन तकरीबन 70 देशों में अंतर्राष्ट्रीय पुरुष दिन के तौर पर मनाया जाता है। जिस तरह अंतर्राष्ट्रीय महिला दिन के समय महिलाओं का सम्मान किया जाता है, जोर शोर से यह दिन मनाया जाता है। उसी तरह 19 नवंबर को पुरुष दिन भी बड़े जोर शोर से मनाया जाना चाहिए। क्योंकि परिवार चलाने में पुरुषों का भी बड़ा योगदान होता है। पुरुष परिवार का आधारस्तंभ होता है। पुरुष के कारण ही घर सुरक्षित रहता है। जब भी कोई बड़ा संकट आता है तो हम अपने बाप को याद करते हैं। इसका मतलब यह होता है कि जब भी कोई बड़ा संकट आता है, समस्या आती है तो हम बाप के भरोसे निश्चिंत हो जाते हैं। इसलिए हर घर में बाप का एक आदरयुक्त स्थान होता है। कई जगहों पर हम देखते हैं कि जहाँ पर पुरुष कोई काम नहीं करता उस घर की स्त्री अपना ही अधिकार चलाने की कोशिश करती है,  किसी का कुछभी नहीं सुनती वहाँ पर पुरुषों की हालत बहुत बुरी होती है। वे समाज के सामने आकर अपना दुख प्रकट भी नहीं कर सकते। इससे निजात पाने के लिए अनेक जगहों पर आज पुरुष संगठन दिखाई देने लगे हैं। वहाँ पर वे एकट्ठा होकर अपना दुख प्रकट करते हैं।  एक दूसरे की सलाह लेते हैं। कई घरों में तो हम देखते हैं कि पुरुष व्यसनाधीन होकर घरमें बेकार बैठा रहता है और वहाँ की स्त्री घर के बाहर जाकर काम करती हैं और  घर चलाती है। ऐसी हालत में परिवार में उसका अधिकार होना लाजमी है। इसीलिए मेरा यह मानना है कि ऐसे पुरुषों को घर में ना बैठ कर बाहर जाकर परीवार के लिए कुछ तो काम करना पड़ेगा। मेरा यह कहना सिर्फ उन पुरुषों के लिए है जो घर में बैठे रहते हैं। अपना स्थान बनाए रखने के लिए हर पुरुष को जिम्मेदारी से रहकर, परिवार के साथ समय बिताकर अपना स्थान कायम करना है। अपने बच्चों को अच्छे संस्कार देना है ताकि आगे चलकर उसका फायदा उसे ही हो। ऐसे बलशाली, परिवार को खुश रखने वाले, जिम्मेदारी बखूबी निभाने वाले सभी बाबा ,भैया, चाचा ,पुरुषों को मेरा प्रणाम।

लेखिका
श्रीमती माणिक नागावे
कुरुंदवाड, जिल्हा. कोल्हापूर
9881862530

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