Saturday, 30 November 2019
कविता ( कधी सांजवेळी )
कविता (स्वप्नपरी )
Friday, 29 November 2019
चित्रकाव्य (झोप )
Sunday, 24 November 2019
चारोळी ( रेशीमगाठ )
चारोळी ( झुणका भाकरी )
Saturday, 23 November 2019
ओवी (सय माहेराची )
Wednesday, 20 November 2019
दुहेरी चारोळी ( साहित्याचे वारकरी )
आंतरराष्ट्रीय पुरुष दिन
Thursday, 14 November 2019
कविता (घर माझे )
Wednesday, 13 November 2019
सोड व्यसनाला
कविता ( गडकिल्ले )
Sunday, 10 November 2019
हिंदी लेख ( राष्ट्रीय पक्षी दिवस )
राष्ट्रीय पक्षी दिवस
12 नवंबर यह जन्मदिन पक्षी प्रेमी डॉक्टर सलीम अली इनका जन्मदिन पक्षीदिन के तौर पर मनाने की घोषणा भारत सरकार ने की। डॉ.सलीम अली का पूरा नाम डॉक्टर सलीम मोइनुद्दीन अब्दुल अली था। मुंबई के सेंट झेवियर कॉलेज में उनकी प्रारंभिक शिक्षा पूरी हुई। बचपन से ही उन्हें पक्षियों का निरीक्षण करना अच्छा लगता था। उनका ज्यादातर समय पक्षियों के निरीक्षण में ही जाता था। इसलिए पढाई में वे अपना पूरा ध्यान नहीं दे पाते थे। एक दिन अपने मामा के साथ बॉम्बे नेचुरल हिस्ट्री सोसायटी देखने गए थे। तभी वहाँ के अनेक प्रकार के पंछियों की जातियाँ देखकर उनके छोटे से मन में पक्षियोंके प्रती कौतुहल जाग उठा। जैसे जैसे वे बढते गए वैसे वैसे उनका पक्षी प्रेम बढ़ताही गया। कॉलेज की शिक्षा पूरी करने के बाद मुंबई नेचुरल हिस्ट्री सोसाइटी में काम करने लगे। लेकिन उनके मन में पक्षियोंके प्रति प्रेम था वह कम नहीं हुआ था। बल्कि बढ़ता ही गया। जर्मन के प्रख्यात पक्षीतज्ज्ञ डॉ.इरविन स्ट्रसमँन के पास जाकर वे 1 साल तक वहाँ रहे और उनसे उन्होंने पक्षियों के बारे में पूरी जानकारी ली,और वहाँ रहकर अपनघ पढाई पूरी की। जब वह वापस भारत आए, तबतक उनकी मुंबई नेचुरल हिस्ट्री सोसायटी की जो नौकरी थी वह चली गई थी। उन्होंने बहुत प्रयास किया नौकरी ढूंढने की, लेकिन उन्हें नहीं मिली। और जहाँ मिली वहाँ इनका पक्षी प्रेम बीच में आया और वह नौकरियां भी चली गई। अंत में उन्होंने मुंबई के पास पत्नी के गाँव कीहीम में आकर रहे। वहाँपर उन्हें पक्षियों के लिए ज्यादा समय देने के लिए समय मिल गया। वहाँ पर उन्होंने सुगरण नामक पक्षी के जीवन पर शोध निबंध प्रस्तुत किया। सुबह से शाम तक बिना खाए पिए वह पक्षीओके के पास ही अपना सारा वक्त बिताते थे। पक्षियों के जीवन की बारीकी से पढ़ाई की थी। उनका यह शोध निबंध पूरे विश्व में सम्मानित हुआ और डॉक्टर सलीम अली पक्षीप्रेमी कहकर पहचानने लगे। पक्षियों के बारे में पूरी जानकारी होने के कारण पक्षी जीवन का चलता फिरता ज्ञानकोष भी उन्हें कहा जाता है। अपने प्रयोग और निरीक्षण के द्वारा उन्होंने बाकी के लोगों के मन में पक्षियों के प्रति कौतुहल निर्माण किया। डॉक्टर सलीम अली को पक्षियों का गहरा अध्ययन था इसलिए उन्हें भारत में पक्षी मानव के नाम से भी जानते हैं। उनका बर्ड्स ऑफ इंडिया यह कीताब बहुत लोकप्रिय हुई है। उनका कार्य देखकर डाक विभाग ने उनके स्मृति में डाक टिकट भी जारी किया है। उन्हें डॉक्टरेट की पदवी भी प्राप्त हुई है। साथ ही साथ उन्हें पद्मभूषण और पद्मविभूषण पुरस्कार देकरभी नवाजा भी गया है।ऐसे पक्षिप्रेमी, पक्षिमानव,पक्षियोंका चलता फीरता ज्ञानकोश सलीम अली का जन्मदिन पक्षी दिन कहकर मनाया जाता है।उन्हें शत शत प्रणाम।
Thursday, 7 November 2019
कविता ( एकांत )
स्पर्धेसाठी
कविता
विषय - एकांत
एकांत वाटे हवाहवासा,
नको कुणाची शिरजोरी.
फसव्या जगात आता फक्त,
शिल्लक राहिलेत माजोरी.
नको कुणाची भाषणबाजी,
नकोच बाष्कळ बडबड.
पाहून पोकळ आश्वासने,
जणू वीज कोसळे कडकड,
दूर डोंगराच्या टोकावर,
वाटे बसावे जाऊन एकांत.
नको गोष्टी संसाराच्या,
झाडाखाली बसावे निवांत
असो परीक्षा जीवनातील,
वा शाळेतील विद्यार्थ्यांची.
सामोरे जाऊ शांतचित्ताने,
रांक लागेल मग यशाची.
एकांतातील रम्य आठवणी,
मोहवून मनाला सुखावते.
आयुष्याच्या सायंकाळी ,
अलवार झुल्यावर झुलवते.
कवयित्री ©®
श्रीमती माणिक नागावे
कुरुंदवाड, जिल्हा. कोल्हापूर
9881862530
चारोळी ( आठवणींचा डोंगर )
स्पर्धेसाठी
चारोळी
आठवणींचा डोंगर
मनात भरुन येतो माझ्या
आठवणींचा डोंगर सतत
सुखाच्या अन् दुखा:च्या
पायघड्यांना असतो झेलत
रचना ©®
श्रीमती माणिक नागावे
कुरुंदवाड, जिल्हा. कोल्हापूर
कविता ( विद्यार्थी )
अ.भा.शिक्षक साहित्य कला क्रीडा मंडळ ( राज्य )
विद्यार्थी दिनानिमित्त विशेष राज्यस्तरीय काव्यलेखन स्पर्धेसाठी
विद्यार्थी
ज्ञानसागरातील हंस,
आजन्म असावा विद्यार्थी.
नेहमीच असावा जगी,
विद्येचा कायमचा लाभार्थी.
निरक्षीर बुद्धी वापरून,
चांगले वाईट ओळखावे.
जे जे वाईट,कालबाह्य,
ते ते सर्व सोडून टाकावे.
गरज एकाग्रता चित्ताची,
गुरुजनांच्या उपदेशाला.
नको नुसती उपस्थिती,
हवी चालना बुद्धीला.
आदर्श असावेत डोळ्यापुढे,
सर्व देशभक्त अन् सैनिक.
तरच घडेल उद्याच्या,
भारताचा आदर्श नागरिक.
विद्यार्जनच ध्येय असावे,
विद्यार्थी जीवन अनमोल.
नाहीतर होईल सहजच,
बहुमोल जीवन मातीमोल.
कवयित्री
श्रीमती माणिक नागावे
कुरुंदवाड , जिल्हा. कोल्हापूर
9881862530
Tuesday, 5 November 2019
दुहेरी चारोळी ( सुगी भिजली )
स्पर्धेसाठी
दुहेरी चारोळी
विषय - सुगी भिजली
डोळ्यात ठेवून आसवे
सुगी भिजली पाण्याखाली
उभे पीक झोपलं रानात
नाही कुणी पोशिंद्याचा वाली
गुडघाभर पाण्यात राबतात
उरलंसुरलं पदरी पाडण्यास
सुगी भिजली डोळ्यासमोर
हाती नाही काही खाण्यास
रचना ©®
श्रीमती माणिक नागावे
कुरुंदवाड, जिल्हा. कोल्हापूर
Monday, 4 November 2019
हिंदी लेख ( विष्णुदास भावे )
आद्य नाटककार विष्णुदास अमृतराव भावे
साहित्य क्षेत्र में अनेक विधायें है। उनमें से नाटक एक विधा ऐसी है जो लोग प्रत्यक्ष रूप में मेहसूस करते हैं। जो लोगों के दिलों में जा बसता है। नाटक लिखना इतना आसान भी नही है। नाटककार की प्रतिभा यहाँ महत्त्वपूर्ण होती है। ऐसे ही एक प्रतिभासंपन्न नाटककार हैं विष्णुदास अमृतराव भावे। वे मराठी के नाटककार हैं।उन्हें नाट्यपरंपरा का जनक, और महाराष्ट्र नाट्य कला का भरतमुनी कहकर पहचाना जाता है। उनका जन्म 9 ऑगस्ट 1819 को महाराष्ट्र के सांगली मे हुआ। उनके पिता अमृतराव सांगली संस्थान के राजा पटवर्धनके दरबार में काम करते थे। विष्णूदास बचपन से ही अत्यंत बुद्धिमान थे। वे हस्तकला मे प्रवीण थे। बहोत बारीकी से कलाकुसर का काम करके वे लकडी कि गुडियाँ बनाते थे।और उन गुडीयोंद्वारा नाटक का प्रयोग करने का उनका सपना था। भानुदास जी को कविता, कथा लिखने का शौक था।1842 को कर्नाटक से भागवत मंडली सांगली में आई थी। उन्होंने "कीर्तन खेल "द्वारा अपने नाटक का प्रयोग दरबार में किया। यह देखकर ऐसा ही नाट्यप्रयोग हम मराठी में शुरू करेंगे ऐसा विचार विष्णुदासजी के पिताजी के मन में आया।उन्होंने विष्णुदास को अपना मानस बताया। विष्णुदास भी ऐसे कीर्तन खेल करें ऐसा उनके पिताजी चाहते थे। आगे चलकर चिंतामनराव पटवर्धन के प्रोत्साहन से भावेजीने 1843 को " सीता स्वयंवर " यह मराठी का पहला नाटक रंगमचपर पेश कीया। 5 नवंबर 1883 को सांगली संस्थान के महल के दरबार हॉल में नाटक का पहला प्रयोग हुआ।सबको वह बहोत पसंद आया।आगे चलकर रामायण के विषयों पर विविध विषयोंपर विष्णुदास जी ने दस नाटक लिखे और उनके प्रयोग भी सफलतापूर्वक संपन्न किए। उनके अनेक नाटक पद्यमय और आख्यानक रचनासे संबंधित थे। उन्हें नाट्याख्याने भी कहा जाता था।उनके पचास से भी अधिक नाट्याख्याने और कवितासंग्रह प्रकाशित हुये हैं। मराठी पौराणिक नाटक लिखनेवाले लोगों को विष्णुदास के पदों का उपयोग आज भी होता है। विष्णु दासजी ने " इंद्रजीत वध" "राजा गोपीचंद " "सीता स्वयंवर "नाटकों का लेखन और दिग्दर्शन भी किया। चिंतामनराव पटवर्धन उन्हें हमेशा आर्थिक मदद करते थे।लेकीन उनके निधन के बाद विष्णुदासको आर्थिक मदद मिलना बंद हो गयी। इसलिए उन्होंने अपना नाट्यप्रयोग करना 1862 को बंद कर दिया। अपने खुद के बनाए हुए लकडी के गुड़ियों के साथ नाटक करने का उनका जो सपना था वह आगे चलकर रामदास पाध्ये और उनकी पत्नी ने पूर्ण किया। उन दोनों ने मिलकर विष्णुदास का लिखा हुआ सीता स्वयंवर नाटक का प्रयोग गुड़ियों के द्वारा लोगों के सामने पेश किया। विष्णुदास भावे जी ने अपना बाकी का समय सांगली में ही बिताया। हर साल 5 नवंबर यह दिन "मराठी रंगभूमी दिन " के तौर पर मनाया जाता है। क्योंकि इसी दिन विष्णुदास भावेजीने 1843 को सीता स्वयंवर नाटक सबसे पहले रंगभूमि पर सादर किया था। इस घटना के स्मरण रूप से राज्य में 5 नवंबर " मराठी रंगभूमी दिन " मनाया जाता है ।इसतरह मराठी नाटक का स्मरण होता है।ऐसे महान नाटककार की मृत्यु 9 अगस्त 1901 को हुई। उन्हें शत-शत प्रणाम।
लेखिका
श्रीमती माणिक नागावे
कुरुंदवाड, जिल्हा. कोल्हापूर.
9881862530
चित्रकाव्य ( मनीमाऊ )
स्पर्धेसाठी
चित्रकाव्य
मनीमाऊ
मनीमाऊ मनीमाऊ,जोडीने,
झोपलात तुम्ही कीती छान.
काळीपांढरी अन् लालपांढरी,
उभे मात्र दोघींचे कान.
उबदार स्पर्श देत एकमेकांना,
ताणून दिली जाम बाकावर.
ठेवून पाय मऊ अंगावर,
समाधान पसरते मनावर.
वाघाची मावशी म्हणती सारे,
रंग तुझा आहेच त्यासारखा.
नाकं दोघींची लाल अन् काळे
लालचुटुक चिंचेसारखा.
मिशा शोभल्या चेहऱ्यावर,
पसरल्या छान चेहऱ्यावर.
जाणिव होते लगेच तुम्हा,
मर्जी तुमची सगळ्यांवर.
पोटभर दुधभात खाऊन,
अशाच झोपा निवांतपणे.
नाहीतर चालू कराल परत,
पायात सर्वांच्या लुडबुडणे.
कवयित्री ©®
श्रीमती माणिक नागावे
कुरुंदवाड, जिल्हा. कोल्हापूर