Saturday, 30 November 2019

कविता ( कधी सांजवेळी )

स्पर्धेसाठी

कविता

कधी सांजवेळी

बांध भावनांचा झाला
कधी सांजवेळी रीता
शांत जीव झाला माझा
ओठी स्फुरली कविता

मानसिक तणावांचे
नको आता ओझे माथी
नाहीतर जीवनात
येते अशांतीच हाती

सांजवेळ आयुष्याची
समाधानी असणार
संगतीने संगीताच्या
नेहमीच फुलणार

नाही आभाळ दु:खाचे
नाही मनात निराशा
बिज अंकुरते असे
जगी दिसे फक्त आशा

सायंकाळी जागवल्या
संवेदना मानवाच्या
हित पाहता स्वतःचे
बंद भिंती भावनांच्या

उघडून नयनांची
दारे खुशाल पाहता
दिसे परदु:ख खरे
शोधू त्यांचा आता त्राता

कवयित्री ©®
श्रीमती माणिक नागावे
कुरुंदवाड, जिल्हा. कोल्हापूर
9881862530

कविता (स्वप्नपरी )

स्पर्धेसाठी

   स्वप्नपरी

स्वप्नपरी गं स्वप्नपरी ,
आहेस का बरी बाई
येतेस का तू माझ्याबरोबर
माझ्या घरी खेळायला,
मनसोक्त बागडायला.

पांढरे शुभ्र पंख तुझे, 
ऊडत येतेस भरभर. 
शोधतो आम्ही सगळीकडे
तूला घरभर अन् बाहेरसुद्धा.
नको अशी तू लपून बसू.

जादूची छडी हातात शोभते. 
कशी काय बाई जादू करते ?पायात बूट, तूझ्या चंदेरी
दिसतेस मला,खूपच भारी
कपडे तुझे छान जरतारी.

ईवले ईवले, तूझे डोळे छान. 
हळूच कलवतेस,ईवली मान.
हसरा चेहरा, पाहून स्वप्नपरीचा,
आनंद वाटतो बालचमूला, 
अनुभव छान खेळण्याचा.

गोड गोड,गुलाबी रंगाची
निळसर सुंदर डोळ्यांची.
नाजूक नाजूक शरीर सारे
नाक,ओठ ईवले ईवले
सगळ्यांनाच खूप आवडले.

कवयित्री ©®
श्रीमती माणिक नागावे
कुरुंदवाड, जिल्हा. कोल्हापूर

Friday, 29 November 2019

चित्रकाव्य (झोप )

स्पर्धेसाठी

चित्रकाव्य

झोप

मिळेल का ही असली गादी,
ऊब मायेची सहज देणारी.
श्वानावरती निवांत पहुडली,
निवांत मनीमाऊ काळीपांढरी

श्वान तपकिरी गेले झोपून,
विसरून साऱ्या वैरभावना.
करुन मुटकुळी शरीराची,
नाही मनी कसल्याच यातना.

सख्य म्हणू का म्हणू मैत्री,
दुर्मिळच झाले दृश्य असले.
विश्वास अन् प्रेमासाठी पहा,
मानव जगातील आसुसले.

गाढ झोपली मनीमाऊ,
देते मित्रत्वाचा असा नारा.
श्वानाचा चेहरा पाहून,
वाटते आता थांबावे का जरा? 

पालापाचोळा सर्वत्र पसरला,
चरतो घोडा पहा दूरवर.
नाही कल्पना याची कोणा,
दिसेनाच कोठे तरुवर.

प्रेम राहुदे असेच अभंग,
जातियवादी दुनियेत.
संवेदनशील बनावी सारी,
राहू देत माणुसकीच्या छायेत.

कवयित्री ©®
श्रीमती माणिक नागावे
कुरुंदवाड, जिल्हा. कोल्हापूर

Sunday, 24 November 2019

चारोळी ( रेशीमगाठ )

स्पर्धेसाठी

चारोळी

विषय- रेशीमगाठ

रेशीमगाठ जीवनातील काल
विवाहबंधनात अशी बांधली
परिपूर्णतेची भावना आपसूक
मुखावर अलवार विसावली

रचना ©®
श्रीमती माणिक नागावे
कुरुंदवाड, जिल्हा. कोल्हापूर

चारोळी ( झुणका भाकरी )

उपक्रम

चारोळी

झुणका भाकर

खाऊन झुणका भाकर
ढेकर येते तृप्तीची खास
उद्याच्या खाण्याची लागते
मग गरीबाच्या पोटाला आस

रचना ©®
श्रीमती माणिक नागावे
कुरुंदवाड, जिल्हा. कोल्हापूर

Saturday, 23 November 2019

ओवी (सय माहेराची )

स्पर्धेसाठी

ओवी रचना

विषय- सय माहेराची

सय माझ्या माहेराची ।
आहे खूपच मोलाची ।।
जाण ठेवते नात्यांची ।
देते भेट प्रेमाची ।।१ ।।

माय नांदे संसारात ।
बाबा व्यस्त हो कामात ।।
भांवडाच्या भावनात ।
गुंग आहे घरात ।।२ ।।

प्रेमभाव मनी असे ।
मानवता अंगी वसे ।।
सर्वत्रच हास्य दिसे ।
जणू गोकुळ हसे ।। ३ ।।

सय येता माहेराची ।
घालमेल जीवनाची ।।
आस दिसे नयनांची।
धार लागे आसवांची ।।४ ।।

माझ्या अंगणी तुळस । 
डुले आनंदी पळस ।।
मोद आनंदी कळस ।
नाही कुठेच आळस ।। ५ ।।

पहा बाबांचा दरारा  ।
सदा डोळ्यांचा पहारा ।।
पण वाटतो सहारा ।
जरी वाटे कापरा ।। ६ ।।

घर माझ्या माहेराचे । 
आहे खूपच मोलाचे ।।
नाही दुसरे तोलाचे ।।
स्थान त्याला मानाचे ।।७ ।।

रचना ©®
श्रीमती माणिक नागावे
कुरुंदवाड, जिल्हा. कोल्हापूर
9881862530

Wednesday, 20 November 2019

दुहेरी चारोळी ( साहित्याचे वारकरी )

स्पर्धेसाठी

दुहेरी चारोळी

विषय- साहित्याचे वारकरी

फोडून बांध भावनांचे
चालले साहित्याचे वारकरी
पेरीत बीज शब्दफुलांचे 
कविमनाच्या आज उरी

सारस्वतांच्या मेळ्यामध्ये
संवेदनांच्या चिपळ्या वाजती
मुखी स्तवन कल्लोळांचे
लेखणीतून भाव झरती

रचना ©®
श्रीमती माणिक नागावे
कुरुंदवाड, जिल्हा. कोल्हापूर
9881862530

आंतरराष्ट्रीय पुरुष दिन

अंतर्राष्ट्रीय पुरुष दिन

 ऐसा कहा जाता है कि स्त्री और पुरुष दोनों एक सिक्के के दो बाजू है। सही है, स्त्री और पुरुष दोनों ही संसार में आवश्यक है। बिना स्त्री के पुरुष और पुरुष के बिना स्त्री की कल्पना भी नहीं की जा सकती। अगर यह दोनों एक साथ चलें , एक दूसरे का सम्मान करते हुए रहते हैं तो संसार के बहुत सारे दुख कम होंगे। और तो और परिवार में भी सुख शांति आएगी। प्राचीन भारत में मातृसत्ताक पद्धती थी। स्त्री को बड़ा सम्मान था। लेकिन धीरे-धीरे वह चार दीवारों के दब गई। उसके विकास के लिए, स्वतंत्रता के लिए 8 मार्च जागतिक महिला दिन के तौर पर मनाया जाने लगा। महिला बाल कल्याण की तरफ से भी स्त्रियों के उन्नति के लिए प्रयास किए जाने लगे। लेकिन पुरुषों के लिए भी कोई दिन मनाना आवश्यक है इसकी जरूरत कभी किसी को नहीं पड़ी। क्योंकि भारत में पितृसत्ताक पद्धति होने के कारण इसकी कभी जरूरत ही नहीं पड़ी। इसका मतलब यह नहीं कि पुरुष हमेशा ही हर जगह सशक्त और बलवान हो। उसकी कोई समस्या नहीं हो। ऐसा नहीं है। आजकल स्त्रीयों की तरह पुरुषों की अवस्था भी सोचने लायक बन गई है। परिवार का पुरुष हमेशा से अपने परिवार की जिम्मेदारी अपने ऊपर लेता है। अपने परिवार के लिए वह हमेशा सजग रहता है। अपने परिवार को खुश रखने के लिए वह अपना दुख अलग रखकर प्रयास करता है। स्त्रियां हमेशा से ही अपना दुख एक दूसरे के साथ, घरमें पती के साथ, बच्चों के साथ साझा करती है। और अपना दुख कम करती है। लेकिन क्या पुरुष ये सब कर सकते हैं?  ऐसा बहुत कम मात्रा में होता है। स्त्रियों की तरह पुरुषों को भी कई समस्याएं, परेशानियाँ होती है। लेकिन वह हाथ पर हाथ धरे बैठ कर चुप नहीं बैठते। उस समस्या का हल ढूँढता है। आज के आधुनिक युग में स्त्रियां तो बहुत आगे आ चुकी है। धीरे-धीरे पुरुषोंपर निर्भर रहना कम हो गया है। इसमें कोई गलत बात नहीं है। लेकिन कई जगह हम यह देखते हैं कि स्त्री और पुरुष में तकरार हो रही है। कई जगहों पर पुरुषों को सताया भी जा रहा है। यह अच्छी बात नहीं है।  स्वतंत्रता का मतलब स्वैराचार  नहीं है। स्त्री और पुरुष दोनों मिल जुल कर रहते है तभी परिवार का अच्छा हो जाता है। बच्चों पर अच्छे संस्कार हो जाते है। पुरुषों की समस्याएं, परेशानियाँ खुले तौर पर चर्चा होने के लिए 19 नवंबर को अंतरराष्ट्रीय पुरुष दिन मनाया जाने लगा। 2007 में भारत में सेव इंडियन फैमिली नाम की पुरुष अधिकार संस्था ने इसकी शुरुआत की। ऑल इंडियन मेंस वेलफेयर एसोसिएशन ने  महिला विकास मंत्रालय की तरह पुरुष विकास मंत्रालय  और पुरुष आयोग का गठन करने की माँग की।  19 नवंबर यह दिन तकरीबन 70 देशों में अंतर्राष्ट्रीय पुरुष दिन के तौर पर मनाया जाता है। जिस तरह अंतर्राष्ट्रीय महिला दिन के समय महिलाओं का सम्मान किया जाता है, जोर शोर से यह दिन मनाया जाता है। उसी तरह 19 नवंबर को पुरुष दिन भी बड़े जोर शोर से मनाया जाना चाहिए। क्योंकि परिवार चलाने में पुरुषों का भी बड़ा योगदान होता है। पुरुष परिवार का आधारस्तंभ होता है। पुरुष के कारण ही घर सुरक्षित रहता है। जब भी कोई बड़ा संकट आता है तो हम अपने बाप को याद करते हैं। इसका मतलब यह होता है कि जब भी कोई बड़ा संकट आता है, समस्या आती है तो हम बाप के भरोसे निश्चिंत हो जाते हैं। इसलिए हर घर में बाप का एक आदरयुक्त स्थान होता है। कई जगहों पर हम देखते हैं कि जहाँ पर पुरुष कोई काम नहीं करता उस घर की स्त्री अपना ही अधिकार चलाने की कोशिश करती है,  किसी का कुछभी नहीं सुनती वहाँ पर पुरुषों की हालत बहुत बुरी होती है। वे समाज के सामने आकर अपना दुख प्रकट भी नहीं कर सकते। इससे निजात पाने के लिए अनेक जगहों पर आज पुरुष संगठन दिखाई देने लगे हैं। वहाँ पर वे एकट्ठा होकर अपना दुख प्रकट करते हैं।  एक दूसरे की सलाह लेते हैं। कई घरों में तो हम देखते हैं कि पुरुष व्यसनाधीन होकर घरमें बेकार बैठा रहता है और वहाँ की स्त्री घर के बाहर जाकर काम करती हैं और  घर चलाती है। ऐसी हालत में परिवार में उसका अधिकार होना लाजमी है। इसीलिए मेरा यह मानना है कि ऐसे पुरुषों को घर में ना बैठ कर बाहर जाकर परीवार के लिए कुछ तो काम करना पड़ेगा। मेरा यह कहना सिर्फ उन पुरुषों के लिए है जो घर में बैठे रहते हैं। अपना स्थान बनाए रखने के लिए हर पुरुष को जिम्मेदारी से रहकर, परिवार के साथ समय बिताकर अपना स्थान कायम करना है। अपने बच्चों को अच्छे संस्कार देना है ताकि आगे चलकर उसका फायदा उसे ही हो। ऐसे बलशाली, परिवार को खुश रखने वाले, जिम्मेदारी बखूबी निभाने वाले सभी बाबा ,भैया, चाचा ,पुरुषों को मेरा प्रणाम।

लेखिका
श्रीमती माणिक नागावे
कुरुंदवाड, जिल्हा. कोल्हापूर
9881862530

Thursday, 14 November 2019

कविता (घर माझे )

स्पर्धेसाठी

घर माझे

घर माझे होते कौलारू,
दगड मातीने बांधलेले.
प्रशस्त अंगण होते छान,
झाडे,वेलींनी बहरलेले.

हळूहळू बदलत गेले रुप,
नवीन घर साकारले.
हिरवाई सगळी निघून गेली,
सिमेंट-विटात बंदिस्त झाले.

विस्तार घराचा खूपच मोठा,
रंगरंगोटी पाहून भुलते मन.
दुमजली ईमारत सुंदर,
पाहून म्हणती सारे कीती छान

प्रेमाने नांदती सारे इथे,
नाही आनंदाला तोटा.
साधीभोळी आहे राहणी,
नाही कधीच अभिमान खोटा.

घर माझे माणवतेने भरलेले,
प्रेम जिव्हाळा इथे नांदतो.
सुख समाधानाच्या धाग्याने,
एकत्र सर्वांना बांधत असतो.

कवयित्री ©®
श्रीमती माणिक नागावे
कुरुंदवाड, जिल्हा. कोल्हापूर

Wednesday, 13 November 2019

सोड व्यसनाला

सोड व्यसनाला

मानवजीवन अमोल आहे,
नको दोस्ती तंबाखूची.
दोस्त हा महाभयंकर,
खात्री देतो कर्करोगाची.

व्यसनाचे याच्या प्रकार अनेक
तंबाखू मिश्री अन् सिगारेट.
आरोग्यसंपन्न जीवनासाठी,
व्यसनमुक्तीचा ठेवा पेपरवेट.

तंबाखूची नको साथ,
नको हाती तंबाखूची पुडी.
रोगांचे बनून आगार,
सोडेल प्राण तुमची कुडी.

निकोटिन ची मात्रा भारी,
करते हानी जीवाची.
कर्करोगाची मिळता भेट,
चाळण होईल शरीराची.

सोड मानवा सोड तू,
व्यसन हे तंबाखूचे.
व्यसनमुक्तीची धरून कास,
आनंदवन कर जीवनाचे.

कवयित्री ©®
श्रीमती माणिक नागावे
कुरुंदवाड, जिल्हा. कोल्हापूर

कविता ( गडकिल्ले )

कविता

गडकिल्ले

भारतभूमीची शान गडकिल्ले,
साक्ष देती इतिहासाची.
पाहून गडकिल्ले जीव घाबरा,
आठवण येते त्या युद्धाची.

गडकोट सागरी,प्रकार कीती,
प्रत्येकाची बातच न्यारी.
अभेद्य, अजिंक्य शत्रूपासून,
संदेश मिळतो बिनतारी.

सिंधुदुर्ग शोभे सुंदर,
समुद्रात उभा अभिमानाने.
बोटींचा करुन प्रवास,
भेटायला येती आनंदाने.

मुरुड जंजिरा, विजयदुर्ग,
नाते जुळले समुद्राशी.
कसे असतील बांधले,
तुलना होई विजयाशी.

प्रतापगड,रायगड,राजगड,
पायऱ्या चढून पाहुया.
वारसा जुन्या बांधकामाचा,
असाच जपून ठेवूया.

कवयित्री ©®
श्रीमती माणिक नागावे
कुरुंदवाड, जिल्हा. कोल्हापूर

Sunday, 10 November 2019

हिंदी लेख ( राष्ट्रीय पक्षी दिवस )

राष्ट्रीय पक्षी दिवस

12 नवंबर यह जन्मदिन पक्षी प्रेमी डॉक्टर सलीम अली इनका जन्मदिन पक्षीदिन के तौर पर मनाने की घोषणा भारत सरकार ने की। डॉ.सलीम अली का पूरा नाम डॉक्टर सलीम मोइनुद्दीन अब्दुल अली था। मुंबई के सेंट झेवियर कॉलेज में उनकी प्रारंभिक शिक्षा पूरी हुई। बचपन से ही उन्हें पक्षियों का निरीक्षण करना अच्छा लगता था। उनका ज्यादातर समय पक्षियों के निरीक्षण में ही जाता था। इसलिए पढाई में वे अपना पूरा ध्यान नहीं दे पाते थे। एक दिन अपने मामा के साथ बॉम्बे नेचुरल हिस्ट्री सोसायटी देखने गए थे। तभी वहाँ के अनेक प्रकार के पंछियों की जातियाँ देखकर उनके छोटे से मन में पक्षियोंके प्रती कौतुहल जाग उठा। जैसे जैसे वे बढते गए वैसे वैसे उनका पक्षी प्रेम बढ़ताही गया। कॉलेज की शिक्षा पूरी करने के बाद मुंबई नेचुरल हिस्ट्री सोसाइटी में काम करने लगे। लेकिन उनके मन में  पक्षियोंके प्रति प्रेम था वह कम नहीं हुआ था। बल्कि बढ़ता ही गया। जर्मन के प्रख्यात पक्षीतज्ज्ञ  डॉ.इरविन स्ट्रसमँन  के पास जाकर वे 1 साल तक वहाँ रहे और उनसे उन्होंने पक्षियों के बारे में पूरी जानकारी ली,और वहाँ रहकर अपनघ पढाई पूरी की।  जब वह वापस भारत आए, तबतक उनकी मुंबई नेचुरल हिस्ट्री सोसायटी की जो नौकरी थी वह चली गई थी। उन्होंने बहुत प्रयास किया नौकरी ढूंढने की, लेकिन उन्हें नहीं मिली। और जहाँ मिली वहाँ इनका पक्षी प्रेम बीच में आया  और वह नौकरियां भी चली गई। अंत में उन्होंने मुंबई के पास पत्नी के गाँव कीहीम में आकर रहे। वहाँपर उन्हें  पक्षियों के लिए ज्यादा समय देने के लिए समय मिल गया। वहाँ पर उन्होंने सुगरण नामक पक्षी के जीवन पर शोध निबंध प्रस्तुत किया। सुबह से शाम तक बिना खाए पिए वह  पक्षीओके के पास ही अपना सारा वक्त बिताते थे। पक्षियों के जीवन की बारीकी से पढ़ाई की थी। उनका यह शोध निबंध पूरे विश्व में  सम्मानित हुआ और डॉक्टर सलीम अली पक्षीप्रेमी कहकर पहचानने लगे। पक्षियों के बारे में पूरी जानकारी होने के कारण पक्षी जीवन का चलता फिरता ज्ञानकोष भी उन्हें कहा जाता है। अपने प्रयोग और निरीक्षण के द्वारा उन्होंने बाकी के लोगों के मन में पक्षियों के प्रति कौतुहल निर्माण किया। डॉक्टर सलीम अली को पक्षियों का गहरा अध्ययन था इसलिए उन्हें भारत में पक्षी मानव के नाम से भी जानते हैं। उनका बर्ड्स ऑफ इंडिया यह कीताब बहुत लोकप्रिय हुई है। उनका कार्य देखकर डाक विभाग ने उनके स्मृति में डाक टिकट भी जारी किया है। उन्हें डॉक्टरेट की पदवी भी प्राप्त हुई है। साथ ही साथ उन्हें पद्मभूषण और पद्मविभूषण पुरस्कार देकरभी  नवाजा भी गया है।ऐसे पक्षिप्रेमी, पक्षिमानव,पक्षियोंका चलता फीरता ज्ञानकोश सलीम अली का जन्मदिन पक्षी दिन कहकर मनाया जाता है।उन्हें शत शत प्रणाम।

Thursday, 7 November 2019

कविता ( एकांत )

स्पर्धेसाठी

कविता

विषय - एकांत

एकांत वाटे हवाहवासा,
नको कुणाची शिरजोरी.
फसव्या जगात आता फक्त,
शिल्लक राहिलेत माजोरी.

नको कुणाची भाषणबाजी,
नकोच बाष्कळ बडबड.
पाहून पोकळ आश्वासने,
जणू वीज कोसळे कडकड,

दूर डोंगराच्या टोकावर,
वाटे बसावे जाऊन एकांत.
नको गोष्टी संसाराच्या,
झाडाखाली बसावे निवांत

असो परीक्षा जीवनातील,
वा शाळेतील विद्यार्थ्यांची.
सामोरे जाऊ शांतचित्ताने,
रांक लागेल मग यशाची.

एकांतातील रम्य आठवणी,
मोहवून मनाला सुखावते.
आयुष्याच्या सायंकाळी ,
अलवार झुल्यावर झुलवते.

कवयित्री ©®
श्रीमती माणिक नागावे
कुरुंदवाड, जिल्हा. कोल्हापूर
9881862530

चारोळी ( आठवणींचा डोंगर )

स्पर्धेसाठी

चारोळी

आठवणींचा डोंगर

मनात भरुन येतो माझ्या
आठवणींचा डोंगर सतत
सुखाच्या अन् दुखा:च्या
पायघड्यांना असतो झेलत

रचना ©®
श्रीमती माणिक नागावे
कुरुंदवाड, जिल्हा. कोल्हापूर

कविता ( विद्यार्थी )

अ.भा.शिक्षक साहित्य कला क्रीडा मंडळ ( राज्य )
विद्यार्थी दिनानिमित्त विशेष राज्यस्तरीय काव्यलेखन स्पर्धेसाठी

विद्यार्थी

ज्ञानसागरातील हंस,
आजन्म असावा विद्यार्थी.
नेहमीच असावा जगी,
विद्येचा कायमचा लाभार्थी.

निरक्षीर बुद्धी वापरून,
चांगले वाईट ओळखावे.
जे जे वाईट,कालबाह्य,
ते ते सर्व सोडून टाकावे.

गरज एकाग्रता चित्ताची,
गुरुजनांच्या उपदेशाला.
नको नुसती उपस्थिती,
हवी चालना बुद्धीला.

आदर्श असावेत डोळ्यापुढे,
सर्व देशभक्त अन् सैनिक.
तरच घडेल उद्याच्या,
भारताचा आदर्श नागरिक.

विद्यार्जनच ध्येय असावे,
विद्यार्थी जीवन अनमोल.
नाहीतर होईल सहजच,
बहुमोल जीवन मातीमोल.

कवयित्री
श्रीमती माणिक नागावे
कुरुंदवाड , जिल्हा. कोल्हापूर
9881862530

Tuesday, 5 November 2019

दुहेरी चारोळी ( सुगी भिजली )

स्पर्धेसाठी

दुहेरी चारोळी

विषय - सुगी भिजली

डोळ्यात ठेवून आसवे
सुगी भिजली पाण्याखाली
उभे पीक झोपलं रानात
नाही कुणी पोशिंद्याचा वाली

गुडघाभर पाण्यात राबतात
उरलंसुरलं पदरी पाडण्यास
सुगी भिजली डोळ्यासमोर
हाती नाही काही खाण्यास

रचना ©®
श्रीमती माणिक नागावे
कुरुंदवाड, जिल्हा. कोल्हापूर

Monday, 4 November 2019

हिंदी लेख ( विष्णुदास भावे )

आद्य नाटककार विष्णुदास अमृतराव  भावे

  साहित्य क्षेत्र में अनेक विधायें है। उनमें से  नाटक एक विधा ऐसी है जो लोग  प्रत्यक्ष रूप में  मेहसूस करते हैं।  जो लोगों के दिलों में जा बसता है। नाटक लिखना इतना आसान भी नही है। नाटककार की  प्रतिभा यहाँ महत्त्वपूर्ण होती है। ऐसे ही एक प्रतिभासंपन्न नाटककार हैं विष्णुदास अमृतराव भावे। वे मराठी के नाटककार हैं।उन्हें नाट्यपरंपरा का जनक, और महाराष्ट्र नाट्य कला का भरतमुनी कहकर पहचाना जाता है। उनका जन्म 9 ऑगस्ट 1819 को  महाराष्ट्र के सांगली मे हुआ। उनके पिता अमृतराव सांगली संस्थान के राजा पटवर्धनके दरबार में काम करते थे। विष्णूदास बचपन से ही अत्यंत बुद्धिमान थे। वे हस्तकला मे प्रवीण थे। बहोत बारीकी से कलाकुसर का काम करके वे  लकडी कि गुडियाँ बनाते थे।और उन गुडीयोंद्वारा नाटक का प्रयोग करने का उनका सपना था। भानुदास जी को कविता, कथा लिखने का शौक था।1842 को  कर्नाटक से भागवत मंडली सांगली में आई थी। उन्होंने "कीर्तन खेल "द्वारा अपने नाटक का प्रयोग दरबार में किया। यह देखकर ऐसा ही नाट्यप्रयोग हम मराठी में शुरू करेंगे ऐसा विचार विष्णुदासजी के पिताजी के मन में आया।उन्होंने विष्णुदास को अपना मानस बताया। विष्णुदास भी ऐसे कीर्तन खेल करें ऐसा उनके पिताजी चाहते थे। आगे चलकर चिंतामनराव पटवर्धन के प्रोत्साहन से भावेजीने 1843  को " सीता स्वयंवर "  यह मराठी का पहला नाटक रंगमचपर पेश कीया। 5 नवंबर 1883 को सांगली संस्थान के महल के दरबार हॉल में नाटक का पहला प्रयोग हुआ।सबको वह बहोत पसंद आया।आगे चलकर रामायण के विषयों पर विविध विषयोंपर विष्णुदास जी ने दस नाटक लिखे और उनके प्रयोग भी सफलतापूर्वक संपन्न किए। उनके अनेक नाटक पद्यमय और आख्यानक रचनासे संबंधित थे। उन्हें नाट्याख्याने भी कहा जाता था।उनके पचास से भी अधिक नाट्याख्याने और कवितासंग्रह प्रकाशित हुये हैं। मराठी पौराणिक नाटक लिखनेवाले लोगों को विष्णुदास के पदों का उपयोग आज भी होता है। विष्णु दासजी ने " इंद्रजीत वध"   "राजा गोपीचंद "   "सीता स्वयंवर "नाटकों का लेखन और दिग्दर्शन भी किया। चिंतामनराव पटवर्धन उन्हें हमेशा आर्थिक मदद करते थे।लेकीन उनके निधन के बाद विष्णुदासको आर्थिक मदद मिलना बंद हो गयी। इसलिए उन्होंने अपना नाट्यप्रयोग करना 1862 को बंद कर दिया। अपने खुद के बनाए हुए लकडी के गुड़ियों के साथ नाटक करने का उनका जो सपना था वह आगे चलकर रामदास पाध्ये और उनकी पत्नी ने पूर्ण किया। उन दोनों ने मिलकर विष्णुदास का लिखा हुआ सीता स्वयंवर नाटक का प्रयोग गुड़ियों के द्वारा लोगों के सामने पेश किया। विष्णुदास भावे जी ने अपना बाकी का समय सांगली में ही बिताया। हर साल 5 नवंबर यह दिन "मराठी रंगभूमी दिन " के तौर पर मनाया जाता है। क्योंकि इसी दिन विष्णुदास भावेजीने 1843  को सीता स्वयंवर नाटक सबसे पहले रंगभूमि पर सादर किया था। इस घटना के स्मरण रूप से राज्य में 5 नवंबर " मराठी रंगभूमी दिन " मनाया जाता है ।इसतरह मराठी नाटक का स्मरण होता है।ऐसे महान नाटककार की मृत्यु 9 अगस्त 1901 को हुई। उन्हें शत-शत प्रणाम।

लेखिका
श्रीमती माणिक नागावे
कुरुंदवाड, जिल्हा. कोल्हापूर.
9881862530

चित्रकाव्य ( मनीमाऊ )

स्पर्धेसाठी

चित्रकाव्य

मनीमाऊ

मनीमाऊ मनीमाऊ,जोडीने,
झोपलात तुम्ही कीती छान.
काळीपांढरी अन् लालपांढरी,
उभे मात्र दोघींचे कान.

उबदार स्पर्श देत एकमेकांना,
ताणून दिली जाम बाकावर.
ठेवून पाय मऊ अंगावर,
समाधान पसरते मनावर.

वाघाची मावशी म्हणती सारे,
रंग तुझा आहेच त्यासारखा.
नाकं दोघींची लाल अन् काळे
लालचुटुक चिंचेसारखा.

मिशा शोभल्या चेहऱ्यावर,
पसरल्या छान चेहऱ्यावर.
जाणिव होते लगेच तुम्हा,
मर्जी तुमची सगळ्यांवर.

पोटभर दुधभात खाऊन,
अशाच झोपा निवांतपणे.
नाहीतर चालू कराल परत,
पायात सर्वांच्या लुडबुडणे.

कवयित्री ©®
श्रीमती माणिक नागावे
कुरुंदवाड, जिल्हा. कोल्हापूर